
आँसू कोई यूँ ही नहीं बहाता है।
रंज-ए-ग़म दिल का बाहर आता है।
बिना दर्द के रोना भला किसे आया?
रोने का तो दुख से गहरा नाता है।
जिन्हें पता हैं अपनों की कमजोरियाँ।
दुखती रग भी वो ही शख़्श दुखाता है।
अपने हैं या गैर नहीं पहचान अलग,
यह तो केवल बुरा समय बतलाता है।
राज कई दिल में दफ़नाने पड़ते हैं,
अगर नहीं दफनाया तो उतराता है।
प्रेम प्रदर्शन करने वाली वस्तु नहीं,
ये तो अलग समझ में ही आ जाता है।
नकारात्मकता में जीते हैं जो भी,
शून्यवाद से निकल नहीं वो पता है।
समझा जिसने प्राप्त को पर्याप्त यहाँ,
वही व्यक्ति ताउम्र ‘अमर’ मुस्काता है।
अमर सिंह राय
नौगांव, मध्य प्रदेश




