
(10 मुक्तक)
आपके नजदीक आकर खो गए ।
अनूठे अनोखे स्वप्न मन में बो गए।
यूं तो हमने मांगी नहीं नजदीकियां,
आये यहां तो बस यहीं के हो गए । 1
पिताजी आपकी याद में रो लेते है।
आंसुओं से ये चेहरा भी धो लेते हैं।
यूं तो ये सारी दुनियां जगमगाएगी,
आप नहीं हो मन ही मन रो लेते हैं। 2
अब अवहेलना बहुत हुई आओ यादों मे रह जाओ।
उल्टी गंगा तो बहुत बही अब में बह जाओ।
अवचेतन मन और चेतन मे , तुम ही रहते हो ,
आओ प्रिय आगे आओ प्रतिपल सांसों में रह जाओ ।। 3
हमारी व्यवस्था का एक आधार बन जायें बेटियां।
हमारी आकांक्षा हमारी कल की आशाएं बेटियां।
कल को बनेंगी ये बहन बुआ पत्नी माँ और पितामही,
प्यार से पालो इन्हें, बनें पल्लवित शाखाएं बेटियां। 4
सच में दुनियां में ऐसा ही होता है ।
सामने देखिए आकर बड़ा रोता है।
पीठ फिरते ही बदल जाते है अपने,
लगता है जिंदगी एक समझौता है। 5
मेरे गीतों को सुनो यूँ लगे एक कल्पना है
मेरी कलम से बनी एक सुंदर अल्पना है।
जीवन के झंझावातों से निकल कर आये हैं,
जीने की एक प्यारी सहज सी संकल्पना है। 6
दुख दुखदायी काश ये टल गया होता।
वो इतना गिरकर भी संभल गया होता
बचपन के अमिट प्रेम को याद कर लेता,
तो अपना अपनों को न छल गया होता। 7
सरल भाषा, कटु उक्ति,पर बहुतों को हया नहीं।
शठे साठ्यम समाचरेत अब कोई भी दया नहीं।
टिप्पणियां लगातार करते परस्पर विरोधियों पर ही,
मित्रो साम्राज्य या धन किसी के साथ गया नहीं। 8
गीत गजलों गीतिका के मर्मज्ञ थे नीरज।
मेरी दृष्टि में काव्य के सर्वज्ञ थे नीरज।
मायानगरी पधारे आप तो शीर्ष छू लिया,
सानिध्य में लगे सच स्थितप्रज्ञ थे नीरज। 9
छोटी छोटी बातों पर न कभी तकरार कीजिये।
दोस्तो का न किसी बात पे तिरस्कार कीजिये।
प्यार करते हैं आपके दोस्त बिना शर्त आपको,
आप भी जब वक़्त मिले इनको प्यार कीजिये। 10
रचनाकार
कुँ० प्रवल प्रताप सिंह राणा ‘प्रवल’
ग्रेटर नोएडा / बेंगलुरु
7827589250




