साहित्य

अप्रतिम_चाँदनी

शशि कांत श्रीवास्तव

उदित हुआ है चाँद आज फिर
अपनी पूरी आभा के संग
इस …..,
आसमान के आँगन में
तारे भी छिटके हैं दूर दूर -पर
देखो तो कुछ टिम टिमा रहे हैं
वहीं ..,पास में कुछ चमक रहे हैं
कुछ टूट रहे ..,कुछ बिखर रहे हैं
कुछ लुप्त हो रहे हैं दूर गगन की छाँव में
वहीं ….,
आसमान में विचरण करते
मेघों पर जब पड़ती हैं
धवल चाँदनी की ये किरणें तब
मानों ऐसा लगता है की -कि
कोई सो रहा हो चिरनिद्रा में जैसे
आभास कराती ये प्रतिबिम्ब
विचरण करती इन मेघों की
उदित हुआ है चाँद आज फिर
अपनी पूरी आभा के संग ,
इस …..,
आसमान से देखो तो …,
कैसे ,बरस रही है धवल चाँदनी
जो लेकरआ रही है संग अपने
अमृत बूंदों को इस वसुधा पर
हो कर घने बादलों से वह आज
उदित हुआ है चाँद आज फिर
शरद पूर्णिमा के रूप में
अपनी पूर्ण कलाओं के संग
आसमान के आँगन में …..||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
05-10-2025

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