साहित्य

करवा चौथ…

मधु माहेश्वरी

ना जाने क्यों,यह कहते हुए
आज भी मोहब्बत से आंखें लजा जाती हैं
कि तुम्हारे लिए करवा चौथ का व्रत रखना
बड़ा अच्छा लगता है ।
सारे किंतु,परंतु,तर्क वितर्क से परे
चांद के इंतज़ार में,एकटक आसमां निहारना
बड़ा अच्छा लगता है ।
बेशक चांद पर उतर गया है मानव
तो भी उस चांद की गवाही में ,अपने चांद के हाथों
पानी पीकर व्रत तोड़ना बड़ा अच्छा लगता है ।
यूं तो कम ही सजती संवरती हूं मैं
करवा चौथ के दिन तुम्हारे लिए नथनी,झुमके
सोलह सिंगार करना,बड़ा अच्छा लगता  है ।
तुम मेरे लिए क्या करते हो ,या कि
मैं तुम्हारे लिए क्यूं करूं,जैसे बेमानी जुमलों से परे
तुम्हारे लिए निर्जल रहना बड़ा अच्छा लगता है ।
करवा चौथ प्यार का पैमाना है,नहीं कहती
व्रत उपवास सिर्फ दिखावा है,ये भी नहीं मानती
चंदा की चंदनिया तले छलनी से  तुम्हें निहारना
बड़ा अच्छा लगता है ।
व्यस्तता यूं तो हावी रहती है हम पे
भागती दौड़ती ज़िंदगी के बीच ,करवा चौथ के बहाने
छत  पर शीतल सर्द रात में
साथ साथ चांद की राह तकते हुए
हल्की फुल्की प्यार भरी गपशप करना
वाकई बड़ा अच्छा लगता है।
@मधु माहेश्वरी गुवाहाटी असम

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