साहित्य

इक्कीसवीं सदी का मेघदूत

वीणा गुप्त

एक रात जब आसमान में,
काले-काले बादल छाए।
विरही पिय का मन अकुलाया।
प्रिया मेरी वो कैसी होगी?
किसके साथ ,कहाँ बैठी होगी?
सोच-सोच जियरा घबराया।
जैसे-तैसे रात गुजारी।
सपने में भी प्रिया निहारी।

भोर हुई प्रिय बहुत उदास था,
दुःख का कारण विलेन बॉस था।
जिसने था ट्रांसफर करवाया।
प्रेमी-युगल का विरह करवाया।
सुबह -सुबह ही फोन लगाया
घंटियाँ तो बजी निरंतर,
पर कोई रिस्पांस न आया।
क्या हो अब,कुछ समझ न आया

आसमान में चमकी चपला,
प्रिय को एक आईडिया आया।
एक सलोने स्मार्ट मेघ को,
उसने अपने पास बुलाया।
हाथ पकड़ कर पास बैठाया,
मीठे स्वर में वचन सुनाया।

मित्र मेघ! तुम हम जैसों की
नैया पार लगाते आए।
तेरे ही तो पूर्वज थे वो,
कालिदास के काम जो आए।
दोस्त मेरे,मेरी भी सुन लो।
सावन की इस मदिर ऋतु में,
निगोड़ी नौकरिया के मारे,
मुझ दुखिया की पीड़ा हर लो।

मोबाइल उनका आफ है शायद
लैंडलाईन भी डैड पड़ा है।
इंटरनेट भी नहीं यहांँ पर,
यार मेरे! बड़ा लफड़ा है।
डाक-विभाग में हड़ताल चल रही,
जल्दी खत्म न होने वाली।
नया-नया यहाँ ज्वॉयन किया है,
छुट्टी मुझे न मिलने वाली।

किसे सुनाऊंँ दुखड़ा अपना,
तुम ही मेरे बनो हवाली।
धरती की पीड़ा तुम हरते,
दो मेरे मन को हरियाली।

ले मेरा संदेश बंधुवर,
दिल्ली नगरी तक हो आओ।
मित्र मेरे! मेरी प्रिया को,
मेरा ये प्रेम -पत्र दे आओ।
प्रथम श्रेणी का फेयर दूँगा,
चाहो तो बॉय एयर जाना।
गर अकेले चाहो न जाना ,
अपनी गर्ल फ्रैंड ले जाना।

पिय की सुन मीठी बातें,
मन ही मन मेघ मुस्काया।
फ्री में दिल्ली घूम आने का,
कैसा गोल्डन चांस ये पाया।
बोला फिर मैं बहुत व्यस्त हूँ,
काम कई पैंड़िंग हैं मेरे।
लेकिन दुखड़ा सुना तुम्हारा,
आँसू निकल पड़े हैं मेरे।
जल्दी पता बताओ बंधु,
कहो ,कहाँ पर जाना है?
तुम्हारा प्रेमसंदेश मित्रवर,
किस गली,घर में पहुँचाना है?

प्रिय ने पता नोट करवाया।
साथ में पैकेट एक थमाया।
ये कुछ गिफ्ट खरीदे मैंने,
बंधु इनको भी ले जाओ।
मेरी प्रिया को मेरे ये सब,
प्रेमोपहार झटपट दे आओ।

ठहरो लोकेशन समझा दूँ,
इधर -उधर कहीं भटक न जाना।
बैठो पूरी बात बता दूंँ।
भारत का दिल दिल्ली प्यारे,
जोर-जोर से धड़कता होगा,
हरेक दिशा में हलचल होगी
पूरा शहर भागता होगा।
इस भागा-दौड़ी में प्यारे,
हिम्मत कर शामिल हो जाना।
सड़क पार करने से पहले,
दाएँ-बाएँ नजर घुमाना।

इधर- उधर से धड़धड़ करता,
काल सरीखा ट्रेैफिक होगा।
पॉल्यूशन के घेरे होंगे।
तुम मुँह पर मास्क रख लेना।
अच्छा हो मेट्रो से जाना।
हम दोनों का टाइम बचाना।

दिल्ली की दक्षिणी दिशा में
वसंत-कुंज का पॉश नजारा।
इसी कुंज के एक सेक्टर में,
मेरी प्रिया का धाम है प्यारा

सजे-धजे अपने कमरे में
प्रिया मेरी वो बैठी होगी।
उसके कटे छँटे बालों से
महक शैंपू की आती होगी
टी .वी. आन-आफ करती वो,
फेसबुक पर चैटियाती होगी।
फिल्मी धुन वो गाती होगी।
अपनी ही धुन में खोई सी,
धीरे से मुस्कराती होगी।

तुम धीरे से जाकर मेघा,
दरवाजे की घंटी बजाना।
कौन है? पूछे जाने पर,
उसको सारी बात बताना।
मृगी सी भोली आँखों वाली,
वो दरवाजे तक आएगी।
इधर-उधर फिर ताक-झाँक कर,
तुझे कमरे में लाएगी।
पल -पल बाहर देखेगी वो,
बेमतलब घबराएगी।

तू मत ज्यादा देर लगाना,
गिफ्ट थमाकर उसको मेरे,
मेरा प्रेम संदेश सुनाना।
धीरज उसको आ जाएगा।
वो थोड़ा सा शरमाएगी।
अपने हाथों से बनाकर फिर,
वो कॉफी तुम्हें पिलाएगी।
कॉफी पी तू फौरन उठना
उससे ज्यादा बात न करना।
तू मुझसे ज्यादा हैंडसम है,
मेरा पत्ता साफ न करना।

ले पाती उसकी जल्दी आना।
मटरगश्ती में मत रम जाना।
हाँ अगर जी चाहे तेरा तो
डोमिनो में पि़ज्जा खा लेना।
सी.पी. में शॉपिंग कर आना।
पी .वी. आर. में मूवी देखना
स्टोरी आकर मुझे सुनाना।
यहाँ तो पिक्चर हॉल न कोई
किस उजाड़ में बॉस ने पटका।
वी.आई.पी .एप्रौच पाते ही,
दूँगा बच्चू को,तगड़ा झटका।

लौट सीधा तू मुझ तक आना।
नहीं तो तेरी ख़ैर नहीं है।
कालिदास का यक्ष नहीं मैं,
इक्कीसवीं सदी का मानव हूँ।
तेरी लापरवाही न सहूँगा,
दाम दिए हैं तुझको ख़ासे,
तुझसे पूरा काम भी लूँगा।

अब जा फौरन मितवा मेरे!
और सुन, जरा ध्यान से जाना।
चोर -उच्चकों से बचना तू,
यूँ ही किसी से भिड़ मत जाना।
लोग तमाशबीन हैं सारे,
तू बेमौत जाएगा मारा ।
काम बिगड़ जाएगा सारा,

मेघ ने समझा ,सिर को हिलाया,
हाथ मिलाकर , टाटा की,
फिर चलने को कदम बढ़ाया।
प्रिय के मन में धीरज आया।

वीणा गुप्त
नई दिल्ली

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