
कुलदीप सिंह रुहेला
#रात के लगभग दस बज चुके थे। हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी। नेशनल हाइवे पर गाड़ियों की रफ्तार हमेशा की तरह दौड़ रही थी। उन्हीं गाड़ियों में एक सफेद कार भी थी, जिसमें रवि अपने दोस्तों के साथ किसी शादी से लौट रहा था। हंसी-मजाक, गानों की आवाज़ और ठहाकों से गाड़ी भरी हुई थी। किसी को अंदाज़ा तक नहीं था कि अगले ही कुछ पल में ज़िंदगी करवट बदल देगी।
अचानक सामने से आती एक ट्रक ने तेज़ी से कट मारा। ड्राइवर ने बचाने की कोशिश की, लेकिन ब्रेक देर से लगे। एक पल का झटका—और ज़ोरदार धमाके की आवाज़। कार सड़क किनारे पलट गई। शीशे के टुकड़े हवा में तीर की तरह बिखर गए। चीखें और खामोशी आपस में टकरा गईं।
रवि का सिर स्टेयरिंग पर जोर से लगा। आँखों के सामने अंधेरा छा गया। पीछे बैठे उसके दोस्त लहूलुहान पड़े कराह रहे थे। सड़क पर लोग धीरे-धीरे इकट्ठे हुए, पर कोई पास जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था। एंबुलेंस बुलाई गई, लेकिन वक्त जैसे वहीं थम गया था।
रवि आधी चेतना में था। कानों में सिर्फ इतना सुनाई दे रहा था—
“कोई पानी लाओ… ये साँस ले रहा है अभी…”
उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, होंठ काँप रहे थे। उसे याद आया कि जाते-जाते माँ ने कहा था, “धीरे गाड़ी चलाना बेटा।”
कुछ देर बाद एंबुलेंस आई। सबको उठाकर अस्पताल ले जाया गया। मगर वहाँ पहुँचते ही डॉक्टर ने सिर झुका दिया। रवि की धड़कनें थम चुकी थीं। उसके दोस्तों में से दो बच गए, लेकिन ज़िंदगी भर के लिए उस हादसे की तस्वीरें उनकी आँखों में कैद हो गईं।
अगले दिन अखबारों की हेडलाइन बनी—
“तेज़ रफ्तार ने ली एक और जान।”
मगर उस एक लाइन में ना माँ के आंसू लिखे थे, ना पिता का टूटा हुआ दिल, ना वो अधूरे सपने जो रवि ने देखे थे। सड़क पर बिखरे खून के निशान कुछ दिन बाद मिट गए, पर उस खतरनाक एक्सीडेंट की व्यथा, हर उस इंसान की यादों में अमर हो गई, जिसने उसे अपनी आँखों से देखा था।
कुलदीप सिंह रुहेला
सहारनपुर उत्तर प्रदेश




