आलेख

महर्षि वाल्मीकि जयंती पर विशेष

डॉ अपराजिता शर्मा

जंगल की नीरव छाँव में, तप की ज्वाला जगी,
अज्ञान की राह छोड़, ज्ञान की ज्योति जली।
क्रौंच की करुण पुकार से, हृदय हुआ व्याकुल,
छंद में ढलकर निकला, वेदों सा मधुर मूल।

रत्नाकर से वाल्मीकि, हुआ जीवन परिवर्तन,
साधना ने कर दिया, अमर काव्य का सर्जन।
रामकथा की गंगा, उनकी वाणी से बही,
मर्यादा का दीपक बन, भारत की आत्मा रही।

भारतीय संस्कृति के गौरवशाली आकाश में यदि किसी ऋषि का नाम प्रथम कवि के रूप में अमिट रूप से अंकित है तो वे हैं – महर्षि वाल्मीकि। उन्हें आदिकवि कहा जाता है, क्योंकि उनके करुणामय हृदय से स्वतः प्रस्फुटित हुआ प्रथम छंद मानवता को साहित्य के अमर पथ पर अग्रसर कर गया।

अंधकार से आलोक तक

किंवदंती कहती है कि महर्षि वाल्मीकि का प्रारंभिक जीवन रत्नाकर नामक एक वनवासी के रूप में बीता। वे शिकार और लूट से जीवन यापन करते थे। परंतु जब महर्षि नारद ने उन्हें सत्य का बोध कराया, तब उनके हृदय में आत्मज्ञान का दीप प्रज्वलित हो उठा। नारद ने उन्हें मंत्र-जप की दीक्षा दी। वर्षों की कठोर तपस्या में जब वे एक दीमक-निर्मित टीले में ढक गए, तब वे “वाल्मीकि” कहलाए। यह परिवर्तन मानव जीवन का अद्वितीय उदाहरण है कि अंधकारमय पथ का पथिक भी साधना से प्रकाश का दीप बन सकता है।

प्रथम श्लोक की करुणा

वाल्मीकि का कवि हृदय करुणा से भरा था। कहते हैं कि एक बार उन्होंने एक शिकारी द्वारा क्रौंच पक्षी का वध देखा। साथी पक्षी की पीड़ा देख उनके मुख से करुणा से युक्त शापात्मक छंद फूट पड़ा। यही छंद संस्कृत साहित्य का प्रथम श्लोक माना गया और इसी क्षण वाल्मीकि आदिकवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

रामायण : आदिकाव्य

महर्षि वाल्मीकि की अमर कृति रामायण भारतीय संस्कृति की आत्मा है। सात कांडों में विभाजित यह महाकाव्य न केवल भगवान श्रीराम के जीवन का चित्रण है, बल्कि मानव जीवन के आदर्शों का सजीव दर्पण है।

यहाँ राम केवल एक अवतार नहीं, मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रकट होते हैं।

सीता त्याग, धैर्य और नारी-सम्मान की प्रतिमूर्ति बनती हैं।

लक्ष्मण, भरत और हनुमान जैसे पात्र भाईचारे, समर्पण और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण देते हैं।

रामायण में धर्म, करुणा, कर्तव्य, न्याय और आदर्श शासन का दर्शन है। यह केवल कथा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।

महर्षि का संदेश

वाल्मीकि का जीवन स्वयं यह प्रमाणित करता है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्म और साधना से महान बन सकता है। उन्होंने दिखाया कि अपराध और अज्ञान की दलदल से निकलकर भी मनुष्य ज्ञान और सृजन का अमर दीप बन सकता है। उनकी वाणी से निकले आदर्श केवल धर्मग्रंथ तक सीमित नहीं, बल्कि समाज के संस्कारों में गहरे पैठ गए हैं।

सांस्कृतिक प्रभाव

रामायण केवल भारत में ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण एशिया में जीवन-मूल्यों का दर्पण बन गई। तमिल, तेलुगु, कन्नड़, बंगाली, मलयालम, थाई, जावानी, कंबोडियाई और अनेक भाषाओं में इसकी रचनाएँ हुईं। इसका मूल स्रोत रहा – वाल्मीकि का आदिकाव्य। वास्तव में, उन्होंने जो बीज बोया, उसने भारतीय साहित्य, धर्म और संस्कृति को सदा के लिए सिंचित किया।

महर्षि वाल्मीकि केवल एक कवि नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक ऋषि थे। उन्होंने अपने जीवन से सिखाया कि साधना और सत्संग से अज्ञान मिटता है और करुणा, न्याय व धर्म से मानव जीवन पवित्र बनता है।
इसलिए उन्हें आदिकवि कहा गया और उनकी वाणी से रचित रामायण आज भी प्रत्येक हृदय में धर्म, प्रेम और मर्यादा का दीप प्रज्वलित करती है।

डॉ अपराजिता शर्मा
रायपुर

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