
निरख शरद चाँदनी चहुँ ओर
झूमें राधा नंदकिशोर ।
आनंदित है सब ब्रजमंडल
रास रचाते हैं चित-चोर ,
देख सोम का रूप सलोना
घेरे बदरी नभ की कोर ।
सभी गोपियाँ रस में डूबीं
धुन वंशी की करे विभोर,
सुर छिड़ते जब प्रेम राग के
नाचे सबके ही मन मोर ।
चन्द्र किरण खेलें जल थल में
लुभा रही हैं वे बहु जोर ,
श्वेत रूप में सजती धरती
मनहु चाँद से मिली चकोर ।
डाॅ. रीता सिंह
चन्दौसी सम्भल




