
देख प्रकृति के रूप को, दहशत में सब आज।
रौद्र रूप में आ गई ,अब कैसे हो काज।।
सुंदर- चौड़े मार्ग को, बहा रही है संग।
खूब मचे चहुँ दिशि प्रलय, देख मनुज है दंग ।।
बादल अब- जब फट रहा, टूट रही चट्टान।
भूस्खलन ने लोग का, तोड़ा है अभिमान ।।
हरी -भरी धरणी भली ,मीठी- सी थी नीर।
गरल हवाओं में भरे ,स्वयं बुलाए पीर ।।
हुई प्रकृति यूंँ कृद्ध अब, रोक सको ज्यों रोक।
पांँव कुल्हाड़ी मार कर, करते हो क्यों शोक।।
क्या पाने की होड़ में ,नित्य रहे हो भाग ।
चल जाना सब छोड़ कर, मानव अब तो जाग ।।
तज कर देखो लोभ को, आए भव्य विहान।
संग प्रकृति के बढ़ो, रौंद नहीं अज्ञान।।
रह- रह आती आपदा ,देती है संकेत ।
खो देंगे अस्तित्व हम, रह जाएगी रेत।।


