साहित्य

तुम करवे का चाँद सजन हो

डाॅ सुमन मेहरोत्रा

मुखड़ा :
तुम करवे का चाँद सजन हो, तुम ही हो श्रृंगार मेरा।
तुम मेरे नयनों का कजरा, तुम ही हो संसार मेरा।।

तेरे नाम का सिंदूर सजा है, माँग में मेरे प्यारे,
सपनों में भी साथ तुम्हारा, जग मेरा उजियारे।
तेरे ही व्रत का है आज दिन, मन में खिला सवेरा।
तुम करवे का चाँद सजन हो, तुम ही हो श्रृंगार मेरा।।

बिंदिया बोले प्रेम कहानी, चूड़ियों की झंकार,
रह-रह कर ये दिल कहता है, तुम ही हो आधार।
पलक बिछाए राह देखती,प्रिये तुझसे मिले उजेरा।
तुम करवे का चाँद सजन हो, तुम ही हो श्रृंगार मेरा।।

सजनी बनी मैं रूप सँवारे, थामूँ आरती थाली,
हाथों में मेंहदी तेरे नाम की, सजे लाल रसाली।
चाँद साक्ष्य हो प्रेम अमर हो, जीवन खिले यथा सबेरा।
तुम करवे का चाँद सजन हो, तुम ही हो श्रृंगार मेरा।।

सज-धज कर जब व्रत खोला, मन में उठीं दुआएँ,
तेरी हँसी बने मेरी पूजा, तेरी खुशी सजाएँ।
तेरे बिना ये जग अधूरा, तू ही प्राण सहारा मेरा।।
तुम करवे का चाँद सजन हो, तुम ही हो श्रृंगार मेरा।।

स्वरचित
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार

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