
ऐ जिंदगी शब्दों में क्या लिखूं मैं जो मेरे हिस्से में आए।
हर घड़ी इम्तिहान दे दे के घबराए।
उठा पटक जिंदगी के लग रहे झमेले,
परिवार में सब होते भी खड़े थे हम अकेले।
ऐ जिंदगी तू मेरे हिस्से में हसीन सौगातें लाई ,
कभी खुशी तो कभी गम बनके छाई।
कभी घर में रोशनी तो कभी अंधेरा छाया,
ऐ जिंदगी तूने मुझे कैसे मझधार में फंसाया।
ऐ जिंदगी तेरी पलटवार को कौन समझ पाया,
मेरी खुशियों के खजाने की तुने गजरा बना सजाया।
संघर्षों के बादलों में कैसे दिन काटे,
पग पग पे अपने वाले बहुत डांटे।
ऐ जिंदगी मेरे हिस्से में क्या तूने दुख ही बाटे,
कभी फुर्सत में सितारों से करती थी किस्मत की बातें।
ऐ जिंदगी अभी मेरे हिस्से में जाने क्या-क्या देखना बाकी है। अभी तो जिंदगी की शुरुआत हुई है ,अभी तो पूरी उम्र बाकी है।
वक्त ने जमाने के चक्कर में बहुत उलझाय था ,
तानाकशी में जकड़ी जिंदगी नं
हिसाब अभी बाकी है।
प्यासी है जिंदगी प्यार अभी बाकी है
दिन बिता मगर मेरे हिस्से की रात अभी बाकी है ।
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शिशु सिंहल आबूरोड




