
पिता के देहांत के बाद जब जीवन की कठिन सच्चाइयों से सामना हुआ, तब मैंने अपने दर्द को शब्दों में ढालना शुरू किया। लेखन मेरे लिए सुकून का माध्यम बना। मेरे लेखन की प्रेरणा मुझे पिता के निधन के उपरांत मिली, जब मैंने अबोध बचपन को संघर्षों की आग में तिल-तिल भस्म होते देखा।
मेरा पहला लेखन पिता को समर्पित ‘शब्दों की पुष्पांजलि’ था — एक भावनात्मक स्मृति।
साहित्यिक यात्रा में मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों और स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। इन्हीं की प्रेरणा ने मेरे लेखन को दिशा और गति प्रदान की।
मेरे लेखन का मूल विषय समाज, रिश्ते और अपनेपन का क्षरण है। आज के दौर में इन मानवीय मूल्यों का लुप्त होना मुझे अत्यंत पीड़ा देता है।
मैं अपनी रचनाओं में गरीबी, असहायता, भ्रष्टाचार और गिरती राजनीति को प्रमुखता देता हूं। आधुनिकता के नाम पर फैलती सांस्कृतिक नग्नता और संस्कारहीनता का मैं विरोधी हूं।
मेरे लिए प्रश्न यह नहीं कि आधुनिक होना गलत है, बल्कि यह है — क्या आधुनिकता के साथ संस्कारों को जीवित रखा जा सकता है?
वर्तमान साहित्य की दशा और दिशा पर मेरा मत है कि आज संवेदनाओं का क्षरण और नैतिक पतन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। ऐसे समय में किसी को तो समाज का संवाहक बनना ही होगा।
साहित्य में समाज को बदलने की अद्भुत शक्ति है — यह विचारों को झकझोरता है, प्रश्न उठाता है और नवचेतना को जन्म देता है।
मैं अपनी रचनाओं में अंतर्मन को पिरोने का प्रयास करता हूं, ताकि वे पाठक के हृदय पर दस्तक दे सकें।
जहां तक परंपरागत भाषा का प्रश्न है, मैं मानता हूं कि उसका पक्षधर होना गलत नहीं है, क्योंकि वह दिलों को जोड़ती है।
हाँ, समय की चेतना और आधुनिक अभिव्यक्ति लेखन को ताजगी अवश्य प्रदान करती है।
इसलिए एक सच्चे साहित्यकार के लिए परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
मैं स्वाभाविक रूप से, भावनाओं और परिस्थितियों से प्रेरित होकर लिखना पसंद करता हूं। इससे लेखन में सहजता, ऊर्जा और सरलता बनी रहती है।
आज साहित्य जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनमें सबसे बड़ी है —
पाठकों का घटता जुड़ाव और त्वरित प्रसिद्धि की दौड़।
इस प्रवृत्ति ने साहित्य की गहराई और मौलिकता को कमज़ोर किया है।
सोशल मीडिया और इंटरनेट ने साहित्य को एक ओर व्यापक मंच दिया है, तो दूसरी ओर उसकी गहराई पर तात्कालिकता का आवरण डाल दिया है।
संवाद और विचार-विमर्श के स्थान पर अब बहसें अधिक हैं, क्योंकि हर कोई स्वयं को सही ठहराना चाहता है। यही कारण है कि पाठक और लेखक के बीच का आत्मीय संबंध कुछ धुंधला हो गया है।
वर्तमान में मेरी तीन प्रकाशित पुस्तकें हैं —
1. “सफ़र जो गुज़र गया” – एक व्यक्तिगत और सामाजिक संस्मरण, जिसमें बिखरते रिश्तों और नई-पुरानी पीढ़ी के अंतराल को समाज की मनोस्थिति के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
2. “साधना पथ” – एक अध्यात्मिक आत्मसार, जो आत्मचिंतन और जीवन दर्शन का मार्ग दिखाती है।
3. “कविताएं मेरे हृदय की” – मेरे भावनात्मक अनुभवों की कविताओं का संग्रह।
युवा पीढ़ी के साहित्यकारों से मेरा संदेश है —
सत्य लिखें, संवेदनाओं को महसूस करें, और मौलिकता से कभी समझौता न करें।
प्रसिद्धि नहीं, गहराई और लक्ष्य को अपना उद्देश्य बनाएं।
साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, यह समाज को बदलने की जीवंत शक्ति है।
यह अन्याय के विरुद्ध नई चेतना का घोष करता है और परिवर्तन की ज्योति प्रज्वलित करता है।
ललित कुमार सक्सैना ‘राही’
✍️ लेखक, कवि एवं चिंतक




