
उग रहा सूरज गगन में, लालिमा सी छा गई,
स्वर्ण रेखाएँ उषा की, दिशि-दिशा में छा गई।
फूल हँसने लगे उपवन, मधु-गंध लहराने लगी,
भोर की पहली किरण से, नींद जग की जा गई।
हर कली मुस्कान बनकर, देखती नव ज्योति को,
पंखुरी पर ओस झलकी, रूप की सुधि ला गई।
चहचहाते पंछियों का, संगीत मधुरिम गूँजता,
नभ तले हर शाख से जीवन धरा पर गा गई।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




