साहित्य

गजब का इश्क

शिवा सिहंल

गजब का इश्क़ जता गई
इश्क़ जता कहाँ चली गई,
मुझे जगा कर खुद सो गई ,
घनघोर घटा इतराके बरस गई,
यूँ फिजाओं में बहारें मचल गई ,
ख्वाबों में आ वो फिर चलीं गई,
गजब,,,,,,
दिल में खुद कि धडकन जोड गई
नैनों से निन्दिया चुरा ले गई,
सुहानी रातो में तन्हा छोड़ गई
ये करवटें भी काटे सी चुभने लगीं,
जाने क्यों मन को बैचेन कर गई,
गजब,,,,
जिंदगी में इश्क़ का घाव दे गई
लुकाछिपी का जख्मों पे नमक रख गई,
में नहीं,, यारो जमाना कहता है
दोस्त वो तुझे धोखा दे गई,
गजब,,,,,,,
मेरी जिंदगी को खामोश कर गई,
सुकून की पोटली खुद के साथ ले गई,
नफरते मेरे दिल में भर गई,
शराब का जाम मेरे हाथों में दे गई,
जाने मन तू मुझसे ये कैसा इश्क़ कर गई,
गजब का,,,,,,,,, है
आज भी ये पलकें तेरा इन्तजार कर रही,
दिल में जो छेडा तुने इश्क़ के सरगम का तार है,
हाय रब्बा कब मुझे तेरा दीदार होगा
जाने कब वो दरवाजे पे दस्तक दे गई.
गजब का इश्क़ जता गईं।
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