
श्री राजबली शुक्ल का जन्म सन् 1900 में देवरिया जिला के करायल शुक्ल गाँव में हुआ था। यह गाँव करायल शुक्ल (मामखोर शुक्ल)
ब्राह्मणों का एक काफी बड़ा गाँव है जो कस्बे के रूप में बहुत तेजी से बदल रहा है।
राजबली शुक्ल के पिता का नाम श्री नवनाथ शुक्ल और माँ का नाम श्रीमती फूलेश्वरी देवी था। इनकी माता जी का देहांत सन् 1956 में हो गया था।इनके पिता अजातशत्रु थे और शरीर से आजानभुज,जिनका देहांत लगभग 110 साल की अवस्था में सन् 1963 मे हो गया।
राजबली शुक्ल और उनके छोटे भाई राजबंशी शुक्ल ने अपनी प्राथमिक शिक्षा क्रमशः करायल शुक्ल और कपरवार मे पूरी किया क्योंकि करायल शुक्ल मे चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई हो रही थी। पाँचवी कक्षा कपरवार से करने के पश्चात जूनियर हाई स्कूल इन लोगों ने बरहज बाजार से किया। जब यह लोग बरहज बाजार में पढ़ते थे तो वहां से कक्षायें समाप्त होने पर कस्बे के पश्चिम तरफ निकलने पर जमीन के अंदर से ओम-ओम की ध्वनि निकलती थी।इन दोनों बालकों को भय लगता था अतः इन लोगों ने गाँव में बड़े-बुजुर्गों से इसकी चर्चा की, तब उन लोगों ने बताया कि वहां अनंत महाप्रभु भुंईधरे मे तपस्या रत रहते हैं,तब इन लोगों का डर जाता रहा। कालांतर में वहीं अनंत महाप्रभु के शिष्य बाबा राघवदास ने परमहंस आश्रम बरहज की स्थापना की एवं समाज सेवा और आजादी के आंदोलन में जुड़े रहे। बाबा राघवदास ने फैजाबाद क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में आचार्य नरेन्द्र देव को विधायक के चुनाव में हराया था। बाबा राघवदास जी और उनके उत्तराधिकारियों से पं.राजबली शुक्ल के घनिष्ठ संबंध थे।
जूनियर हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात हाईस्कूल में
पढ़नें के लिए यह दोनों भाई बनारस चले गये। उन दिनों देवनंदन शुक्ल और उनके छोटे भाई बाबूनंदन शुक्ल एवं राजबली शुक्ल और राजबंशी शुक्ल साथ ही रह कर बनारस में पढ़ने लगे। देवनंदन शुक्ल बरहज विधानसभा क्षेत्र के 1952 में पहले विधायक चुने गए थे, उस समय वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई बनारस से ही कर रहे थे। यह सभी लोग साथ ही रह कर पढ़ने लगे और बाद में देवनंदन शुक्ल के छोटे भाई बाबूनंदन शुक्ल पुलिस इंस्पेक्टर हुए।
यहाँ ध्यातव्य है कि देवनंदन शुक्ल पड़ोसी गाँव पुरैना शुक्ल के निवासी थे और वहीँ के श्री कुबेर नाथ शुक्ल संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में वर्षों तक रजिस्ट्रार रहे और बाद में
वाइस चांसलर भी। कुबेर नाथ शुक्ल तत्कालीन शिक्षा मंत्री (उ.प्र.) कमला पति त्रिपाठी के रिश्तेदार थे।
जिस समय राजबली शुक्ल और राजबंशी शुक्ल बनारस में पढ़ ही रहे थे,उसी बीच इनके बड़े भाई राजधारी शुक्ल
अल्प शिक्षा में ही कलकत्ता नौकरी करने चले गये और
लगभग दो साल की नौकरी के बीच वह बीमार पड़ने के कारण कलकत्ता से घर लौट आये और उनका देहांत हो गया।
इन्हीं विषम परिस्थितियों में राजबली शुक्ल पढ़ाई छोड़ कर जीविकोपार्जन हेतु कलकत्ता चले गये। आगे छोटे भाई को क्वींस कालेज से हाईस्कूल की फाइनल परीक्षा देनी थी,संयोग से उन्हें परीक्षा के शुरूआती दौर में ही चेचक निकल आया। परीक्षाधिकारियों ने उनके लिए अलग से सीसे का केबिन बनवाया और परीक्षा के उपरांत परिणाम आने पर वह कालेज में सर्वोच्च अंकों के साथ सन् 1923 में उतीर्ण हुए।
उसके बाद वह भी कलकत्ता की तरफ प्रस्थान कर गए और
बिरला ग्रुप के केशवराम काटन मिल मे स्टोर प्रबंधक की नौकरी करने लगे।
इस बीच पं.राजबली शुक्ल क्रांतिकारी चेतना से जुड़े रहे और धर्मतल्ला निवासी एक
अंग्रेज अफसर को मारने के उद्देश्य से चार-पाँच लोगों ने मिलकर एक सेकेण्ड हैण्ड कार खरीदी। खैर इस योजना की भनक पुलिस को लग गयी
और राजबली शुक्ल उक्त मामले से बाल-बाल बच गए।
कांग्रेस में भी उस समय वह गर्म दल के पक्षधर थे। सन् 1921 में वह बड़ा बाजार जिला कांग्रेस कार्यालय से गिरफ्तार कर लिए गए और सी.आर.दास के साथ एक साल प्रेसीडेंसी जेल में रहे सन् 1927 तक वह कुछ कुछ क्रांतिकारी विचारधारा से जुड़े रहे। इस बीच गाँव करायल शुक्ल में 1927 में ही घोड़े पर सवार लगभग दर्जन भर अंग्रेज पुलिस आ धमकी और पूरे घर की तलाशी लिए,संयोग से किसी
क्रांतिकारी का एक फोटो और कुछ कागजात उनके छोटे भाई की पत्नी ने जो उस समय गर्भवती थीं, अपने वस्त्र में छिपा लिया था और वह बच गए।
सन् 1930 में नमक सत्याग्रह में गिरफ्तार हुए और दमदम,अलीपुर एवं प्रेसीडेंसी जेल में किरणशंकर रे,जे.एन.सेन गुप्ता और वी.सी.राय के साथ कारागार में एक साल रहे। सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में कैद किये गये और प्रेसीडेंसी जेल से तीन साल बाद सन् 1945 में छूटे।
कलकत्ता में 120,काटन स्ट्रीट,बड़ा बाजार उनका निवास स्थान और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। पेशे से वह शिक्षक थे।
उन्होंने हिन्दी से विशारद तक
शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने किच्छा में जमीन नहीं ली। घर वालों के बहुत हठ करने पर बहुत दिनों बाद पेंशन के लिए राजी हुए।
सन् 1982 में 82 वर्ष की आयु में उनका करायल शुक्ल में देहांत हो गया।
पं राजबली शुक्ल बहुत सहिष्णु स्वभाव के व्यक्ति थे।
यदि कोई आगंतुक मेहमान अचानक आ जाता तो कई बार अपना भोजन ही उसे देकर भूखे सो जाते थे और घोठे पर रहते हुए घर पर नहीं सूचित करते थे।
इन दोनों भाइयों ने सन् 1951में राजबली शुक्ल के सुपुत्र केशवचंन्द्र शुक्ल को बी.एससी.करने के बाद इंजीनियरिंग करने के लिए लंदन (यू.के.)भेजा। वह बी.ई.करने के बाद वहीं नौकरी करने लगे। सन् 1962 में भारत आये,पुनः कुछ दिनों बाद वापस गये और सन् 1964 में स्थाई रूप से वापस आये।विदेश से लेकर भारत में
पावर केबिल्स की फैक्ट्री में कई जगह वाइस प्रेसिडेंट रहे।
बीच में दो साल कैमरून (अफ्रीका)में केबिल फैक्ट्री में डाइरेक्टर रहे।सन् 1990 में केशवचंन्द्र शुक्ल का निधन हो गया।
राजबली शुक्ल के मझिले सुपुत्र श्रीनिवास शुक्ल जो
मैहर सीमेंट फैक्ट्री में मेंटिनेंस मैनेजर लम्बी अवधि तक रहे,
वह भी सन् 1963 में लंदन गये और सन् 1968 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर के वापस लौटे।
उनके तीसरे बेटे कर्मचन्द्र शुक्ल की शिक्षा M.A.,LL.B थी और वह बैंक आफ इंडिया में कलकत्ता एवं लखनऊ मे प्रबंधकीय वर्ग में सेवा रत रहे।
श्री राजबली शुक्ल विभिन्न समय में कई बार बढ़ा बाजार जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और महामंत्री रहे। उनका गाँव में एक ग्रुप फोटो टंगा था,जिसमें वह महामंत्री और कैलाशनाथ काटजू अध्यक्ष थे।
मेरे पिता और ताऊ जी ने मेरे बाबा नवनाथ शुक्ल के नाम संभवतः सन् 1949 मे तीन बीघे जमीन का दान कर जूनियर हाई स्कूल खोला था,जिसके प्रबंधक राजबली शुक्ल थे।
अकस्मात एक दिन सन् 1960-61में पिता जी द्वारा बनाए गए नये मकान के पहले कमरे में एक मीटिंग हुई। श्री देवनंदन शुक्ल,श्री कुबेर नाथ शुक्ल,श्री कमला चौबे,हरिवंश शुक्ल,राजबली शुक्ल और राजबंशी शुक्ल उपस्थित थे। इस मीटिंग में कुबेर नाथ शुक्ल ने यह प्रस्ताव रखा कि वह लोग एक संस्कृत महाविद्यालय पुरैना शुक्ल मे खोलना चाहते हैं। पिता जी ने यह स्पष्ट कर दिया कि आप कोई भी विद्यालय खोलिये पर उस विद्यालय का विपरीत प्रभाव श्री नवनाथ शुक्ल जूनियर हाई स्कूल,करायल शुक्ल पर नहीं पड़ना चाहिए।
खैर,उत्तर प्रदेश के तत्कालीन शिक्षा मंत्री पं.कमला पति त्रिपाठी आये,उस तथाकथित महाविद्यालय का उद्घाटन किये,जो बाद में गर्गाश्रम जूनियर हाई स्कूल बना।
श्री राजबली शुक्ल के कहने पर कमला पति त्रिपाठी जी अपने पूरे अमले के साथ अगले दिन मेरे घर पर दोपहर का भोजन किये।
गर्गाश्रम जूनियर हाई स्कूल पहले साल धूम धाम से चला,नवनाथ शुक्ल जूनियर हाई स्कूल के छात्रों की आंशिक संख्या भी घटी,दूसरे साल गर्गाश्रम कुछ लड़खड़ाया,तीसरे साल उसका इति श्री हो गया।
कालांतर में गाँव वालों के आपसी मतैक्य नहीं होने एवं कुछ अन्य विषम परिस्थितियों के कारण
श्री राजबली शुक्ल ने यह स्कूल जिला परिषद को दे दिया, सन् 69-70 में जब श्री राजमंगल पांडेय उसके अध्यक्ष थे।
रविशंकर शुक्ल
ग्राम व पोस्ट-करायल शुक्ल
देवरिया (उ.प्र.)




