
बीना इमरती लिए हुए जब मैं ससुराल आया।
पीने के पानी की जगह सामने मेरे दाल आया।
मैं साले का मुंह ताका वह मेरा मुंह ताक रहा।
वो अंदर ही अंदर मेरी अवकात नाप रहा।
मैं बोला पानी की जगह दाल सामने लाए हो।
कहाँ से तुम ऐसा संस्कार साले जी पाए हो।
कहा आपकी दुर्दशा देख जीजा जी ये ख्याल आया।
बीना इमरती लिए हुए जब मैं ससुराल आया।
(2)
सबके चेहरे पर तनाव था सब मुझे घूरने लगे।
मुझे देखते ही सास ससुर के सांस फूलने लगे।
शायद उन्हें पता चल गया मेरी नौकरी चली गई।
जो ससुराल में इज्जत थी पल भर में चली गई।
मैं अपना दुम दबाकर चुप चाप सटक गया।
जिस कुर्सी पर बैठा उसी पर अटक गया।
मेरी मानसिक वेदना का किसी को न ख्याल आया।
बीना इमरती लिए हुए जब मैं ससुराल आया।
(3)
मैंने मुंह लटका कर नौकरी जाने की बात कही।
ससुर जी झट बोले जो हुआ पर हुआ सही।
बोले तुम रोज ही लेट से आफिस जाते थे।
जाने कहाँ रास्ते भर घुमते आफिस आते थे।
कोई न कोई बहाना आफिस पहुँच बनाते थे।
मेरी बेटी का नसीब तुम्हारे साथ फुट गया।
मेरा सारा दान दहेज भी तेरे साथ लूट गया।
तेरा असली रूप अब मेरे सामने आया।
बीना इमरती लिए हुए जब मैं ससुराल आया।
(4)
मेरी नौकरी गई तो साली को साक लग गया।
जो गिफ्ट मिलता था अब शायद रूक गया।
ससुर सुने तो बोले मेरी लड़की को मायके भेजो।
अगर नौकरी नहीं रही तो घर जमाई बन रहो।
अब मैं तुम्हें तुम्हारे घर कत्ई नहीं जाने दूंगा।
घर जाने की जीद्द की तो अप्रिय निर्णय लूंगा।
छुट्टी छूट्टा का ख्याल ससुर के जेहन में आया।
बीना इमरती लिए हुए जब मैं ससुराल आया।
(5)
बोले ससुर तुम नक्कारे हो मैं तलाक दिलवाउंगा।
अपनी लाडली को इस बात के लिए मनाउंगा।
मैं बोला ससुर जी ऐसा अनर्थ न करें।
हिन्दू धर्म में इस तरह का अधर्म न करें।
आज नहीं तो कल फिर नौकरी मिल ही जाएगी।
सरकारी नौकरी है ऐसे नहीं चल जाएगी।
अभी चर्चा चल ही रही थी तभी बहाली का संदेश आया।
भुलक्कड़ अब फैलने लगा जब ससुराल आया।
भुलक्कड़ बनारसी



