साहित्य

स्त्रियों का पोस्ट भा गया है दोस्तों

आचार्य धीरज द्विवेदी "याज्ञिक"

(व्यंग)

देखना पड़ रहा है कैसा समय,
क्या जमाना आ गया है दोस्तों,
चाह सबकी बनी है एक जैसी,
स्त्रियों का पोस्ट भा गया है दोस्तों।

एक सुंदर सी नवेली फेसबुक पर,
पोस्ट डाली दूध में रोटी तोड़कर।

टिप्पणी आई इतनी जब वहाँ तो,
देख पगलाया बैठा सिर पकड़कर।

थी टिप्पणियां जो साझा कर रहा हूँ,
एक एक को यहाँ मैं गढ़ रहा हूँ।

सुनों जी जबाब दे दो फैंस का,
दूध लेना गाय का या भैंस का।

दूध में शक्कर या फिर गुड़ चलेगा,
दूध ठंडा या फिर गरम लेना पड़ेगा।

क्या रोटी के बदले पाव रोटी चलेगी,
ताजी रहेगी या फिर बासी ही चलेगी।

क्या चक्की से गेंहू को पिसवाना पड़ेगा,
या फिर दुकान से ही आटा लाना पड़ेगा।

क्या हाथ से बनी हुई देशी रोटी,
पतली रहेगी या फिर रहेगी मोटी।

आई तभी पोस्ट पर एक नगीना,
हाथ में बेलन लिए पोछती पसीना।

बोली बहन मुझे बस इतना बताना,
स्वयं बनानी रोटी या उनसे बनवाना।

ऐसा बताओ कि मैं भी जल्दी बनाऊँ,
देखते देखते मैं भी प्रसिद्ध हो जाऊँ।

एक लुच्चे ने लिखा क्या रेसिपी है,
तेरी सूरत तो मेरे दिल में बसी है।

ना जाने कब मेरे घर आओगी
अपने हाथों से मुझे खिलाओगी।

एक निठल्ले बुड्ढे ने तभी फरमाया,
मुझे तो दूध रोटी ही है मन भाया।

खिलाने दूध रोटी कब बुलाओगी,
मुझे आना होगा या तुम ही आओगी।

इस प्रकार सब आपस में लड़ रहे थे,
एक दूसरे के ऊपर चढ़ रहे थे।

तब तक उस सुंदरी का जबाब आया,
खिला रही थी रोटी बेटे ने पोस्ट बनाया।

।। आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक” ।।

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