साहित्य

खुशियों का घरौंदा

मधु माहेश्वरी

आओ घरौंदा फिर से नव एक हम बनाएं
खु़शियों की झालरों से,मिलकर इसे सजाएं ।

कुछ ग़म नहीं जो टूटा, इक बार ये घरौंदा
टुकड़ों को जोड़कर आशादीप हम जलाएं ।

जो प्यार के हैं दुश्मन,होते रहें हमें क्या
मासूम प्रेम की आओ,पौध हम लगाएं ।

नफ़रत कभी किसी को,कुछ दे कहां है पाई
है प्रेम से ही दुनियां,ये सीख हम सिखाएं ।

है प्रेम  प्रेम राधा ,  है प्रेम  प्रेम  मीरा
है प्रेम का ये जादू ,कान्हा को जो रिझाए ।

तन प्रेम में हो भीगा,मन प्रेम में हो भीगा
हो प्रेममय जहां ये,कुछ ऐसा कर दिखाएं ।

है प्रेम ये गगन का,को सींचता धरा को
है प्रेम ये  धरा का, नव  कोंपले  उगाए
@मधु माहेश्वरी गुवाहाटी असम

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