
काश तुम मेरी किताब होते,
हर पन्ने पर तुम्हारी बात होती।
मैं रोज़ तुम्हें थोड़ा-थोड़ा पढ़ती,
हर अल्फ़ाज़ में तुम्हारी मुस्कान बसती।
जब दिल उदास होता,
तो तुम्हारे पन्ने पलट लेती,
हर शब्द से सुकून पाती,
जैसे तुम मेरे पास हो ।
कभी बुकमार्क से छू लेता तुम्हें,
कभी आँसू गिरते उन लफ्ज़ों पर,
और वो भी तुम्हारी तरह चुपचाप,
मुझे समझा जाते बिना कुछ कहे।
काश तुम मेरी किताब होते
तो हर बार मैं वहीं लौट आती,
जहाँ आख़िरी बार
दिल ने तुम्हें पढ़ा था…
पूनम त्रिपाठी
गोरखपुर



