सारी दुनिया उदय होते सूर्य पूजती है….मात्र बिहारी छठव्रती ही हैं …..जो अस्त होते सूर्य को भी पूजते हैं
नीरज कुमार सिंह

छठ महापर्व बिहार और पूर्वांचल समेत पूरे विश्व में मनाया जाने वाला एक विशिष्ट महापर्व है। जिसके अंतर्गत भगवान सूर्य तथा प्रकृति के छठे स्वरूप माँ कात्यायनी की आराधना की जाती है । देखा जाए तो बिन सूर्य के प्रकृति की कल्पना ही निरर्थक साबित होगी। इसलिए प्रकृति के सलामती और। रक्षण हेतु श्रद्धा आस्था से परिपूर्ण छठ पर्व किया जाता है। छठ महापर्व का दृष्टिकोण बेहद वैज्ञानिक है।हमारे पूर्वजों की सोच कितनी दिव्य थी वो इस छठ पर्व से ही सीखी जा सकती हैं।
छठ महापर्व में सूर्य की आराधना का वैज्ञानिक कारण यह है कि बिना सूर्य के किसी भी जीव या वनस्पतियों को जीवित रहना बेहद कष्टदायक या असंभव कार्य होगा।
बिन सूर्य की रौशनी के पेड़ पौधे अपना भोजन कैसे प्राप्त करेंगे?
जब वनस्पति पेड़ पौधे को रोशनी नहीं प्राप्त होगी तो वो हमें शाक सब्जी फल एवं सबसे मुख्य प्राण वायु ऑक्सीजन हमें कैसे प्रदान करेंग? इसलिए ही हिन्दू धर्म में अनादि काल से ही प्रकृति को देवता मानकर पूजने की शुरुआत की गई होगी।
अगर छठ महापर्व की उत्पति की चर्च करें तो ….
छठ महापर्व साल में दो बार मनाई जाती है और यह व्रत सतयुग
किया जा रहा है।
एक कथा अनुसार राजा प्रियंमवद और रानी मालिनी जो संतान सुख से वंचित थे ।
जिसके कारण दोनों राजा रानी हर वक्त दुखी रहते थे, एकदिन कश्पय मुनि ने सलाह दिया हे राजन तुम संतान कामना हेतु यज्ञ करो।
कश्यप मुनि के निर्देशन में राजा प्रियंबद और रानी मालिनी ने विधि विधान यज्ञ किए ।
यज्ञ से है प्राप्त हुई खीर को ग्रहण किए जिसके फलस्वरूप राजा रानी को संतान सुख तो प्राप्त हुआ लेकिन पुत्र जन्म लेते ही मर गया था।
जिसके वियोग में राजा रानी नवजात शिशु के शव को लेकर जंगल में चल पड़े और अपने प्राणों त्यागने प्रण कर लिए तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई उन्होंने राजा प्रियंबद और रानी मालिनी के नवजात शिशु को जीवित कर दिया ।
राजा प्रियंबद और रानी मालिनी के हर्ष का ठिकाना ना रहा राजा रानी दोनों उनके चरणों में गिरकर पूछने लगे की “हे देवी आप कौन हैं”।
राजा रानी की ये बात सुनकर देवसेना ने कहा …”मै ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना हूं ,मुझे ही कात्यायनी माता के नाम से भी जाना जाता है। मै प्रकृति की छठी स्वरूप से उत्पन्न हुई हूं ,जिसके कारण मुझे छठी मैया भी कहा जाता है।
मै संतान की रक्षा करती हूं ,
आप जाओ और धरती पर सबको बताओ मेरे बारे “!
राजा प्रियंबद और रानी मालिनी ने अपने पुत्र जीवित होने की खुशी में छठी मैया का धूम धाम से व्रत पूजन अर्चन अनुष्ठान किए ओर लोगों को करने का आदेश दिए।
एक कथा अनुसार महाभारत काल में पांडव कौरव में युद्ध के समय द्रौपदी ने भी सूर्य पूजा या छठी मैया की पूजा की थी ।
त्रेता माँ सीता ने भी छठ व्रत किया था ऐसा शास्त्रों अध्ययन पर सुनने को मिलता है।
महारथी कर्ण भी सूर्य की पूजा मनोयोग से करता था।
छठ पर्व के विधि विधान की बात करें तो…
सूर्यषष्ठी छठ पर्व साल में दो बार मनाई जाती है,…एक चैत्र मास में एक कार्तिक मास दोनों महीनों षष्टी तिथि को ही मनाई जाती है।
कार्तिक की छठी दिवाली के छठे दिन मनाई जाती है।
छठ व्रत में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा है..
व्रत को करने वाला एक दिन पहले लहसून प्याज आदि गरिष्ठ भोज्य को त्याग कर देता है।
व्रती अपने घर विशेष रूप से स्वच्छ रखता है एक दिन पहले नदी या तालाब के घाट पर जाकर स्नान करके व्रत की शुरुआत करता है।
एक दिन पहले नहाए खाए होता इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण करता है व्रती ।
सुबह शाम जल में खड़ा रहकर सूर्य की उपासना की जाती है गंगा जी को दीप अर्पण की जाती है।
व्रती शुद्ध ढंग से घर छठ का प्रसाद तैयार करते हैं ।
छठ माता का पसंदीदा प्रसाद ठेकुआ, खजूर ,खस्ता , पुआ अन्नास ,शरीफा ,पनियाला ,गंजी , सुथनी,केला सेब , अनार अंगूर ना,रियल ,पपीता, कद्दू ,लौकी , मूली , हल्दी अदरक, गन्ना साठी चिऊरा साठी चावल आदि छठआता के कुछ मुख्य प्रसादों में शामिल हैं।
मौसम में मिलने सभी छठ माता के पूजन में शामिल किया जाता है।
छठ के एक दिन पूर्व भी कुछ लोग व्रत रहते छोटी छठ को जिसमें शाम को गुड़ की खीर और रोटी का भोग लगाया जाता है।
लेकिन बड़ी छठ के व्रत में 24 घंटे निर्जल व्रत रहना होता है अगले दिन सूर्योदय के बाद अर्द्ध देने के बाद ही जल या अन्न ग्रहण किया जा है।
छठ महापर्व की एक और विशेषता यह है …… कि
जहां समस्त संसार उदय होते सूर्य को है पूजता है …वहीं हम भोजपुरिया बिहारी लोग छठ महापर्व में अस्त होते सूर्य को भी पूजते हैं ।
जो इस पर्व को अन्य पर्वों से विशिष्ट दर्जा प्रदान करता है।
एक ओर जहां उदय होते सूर्य नई ऊर्जा तरकीय उन्नति की कामना करते हैं वरदान मांगते है।
वहीं अस्त होते सूर्य को पूजने का कारण यह है कि इस प्रकृति प्रकृति में जो भी विद्यमान है उसका अस्त होना निश्चित है।
किंतु अस्त होने वाले का उदय भी होता है … यह संदेश छठ पर्व देता अर्थात अंत के बाद एक नई शुरुआत होती है।
व्यक्ति को कभी भी अपने हार से घबराना नहीं चाहिए आज हार रहे हो तो …
कल विजय भी आप जरूर होगे … हिम्मत नहीं हारना है।
अर्थात छठ महापर्व हमें यह प्रेरणा देता है कि …जिसका अंत होता है …उसका उदय भी होता है…..और हर अंत एक नए उदय शुरुआत को जन्म देता है ।
जैसे आज सूर्य के अस्त होने बाद पुनः उदय भी होता है ऐसे ही जीवन में दुख है तो सुख भी आयेगा यह सीख हमें छठ पर्व हमें सीखना चाहिए ।
सच में …
हर अंत के बाद उदय भी होता यही प्रेरणा देती छठी मैया ,, और
हम सभी भोजपुरिया संस्कृति की जनता और बिहारियों को गर्व करना चाहिए कि सारी दुनिया उगते हुए सूर्य को पूजती है तो…हम पूर्वांचली और बिहारी भाई , अस्त होते सूर्य को भी पूजते हैं
जय छठी मैया सभी जन पर सदा सहाय बनो ।
स्वरचित
नीरज कुमार सिंह
देवरियां उत्तर प्रदेश
(ग्राम घटैला गाज़ी)



