
आ गया पर्व शुभ प्रतीक, धनतेरस का मंगल दिन,
दीप जले हर एक द्वार, जगमग हो धरती गगन।
सोना-चाँदी ले जग सारा, शुभ-लाभ की आशा में,
धन की देवी वर दें, सुख-समृद्धि का अभिनंदन।।
फिर आई दीपावली, प्रकाश का उत्सव प्यारा,
अंधियारे को हरने वाली, हर घर में उजियारा।
माटी के दीपों से सजी, जीवन की यह गलियारी,
प्रेम, शांति, आनंद बरसे, जैसे फूल कुमुद क्यारी।।
गणेश-लक्ष्मी पूजन बेला, मंगलमय वातावरण,
शंखनाद, आरती-ध्वनि, भरे भक्ति का आलोकवन।
लक्ष्मी कृपा बरसे सब पर, गणपति हरें विघ्न सारा,
भक्त चरण में दीप धरें, हर मन हो अब उजियारा।।
अगले दिन अन्नकूट सजे, भोग लगे श्री ठाकुर को,
राधा संग श्याम झूमते, रस बरसे हर मनमोहन को।
गोकुल मथुरा का उत्सव है, प्रेम सुधा रस से भरा,
भक्ति की गंगा बह चली, आनन्द चतुर्दिक छा गया।।
छप्पन भोग लगे जब देखो, राधा-कृष्ण विहार में,
माखन-मिश्री, फल-मेवा, सुगंध भरे हर द्वार में।
नृत्य गूँजता मधुबन वन में, बंसी स्वर मधुर प्यारा,
कृष्ण कृपा से जगमग , हर मन हो
अब उजियारा।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




