पचास सालों से, पूरी रात जलता सृजन दीप , डॉ रामशंकर चंचल

अद्भुत, सचमुच बेहद सार्थक सत्य, डॉ रामशंकर चंचल, मध्य प्रदेश के आदिवासी पिछड़े अंचल झाबुआ के साहित्य साधक हैं जिनके घर, आंगन में दस्तक देता हुआ सार्थक उपलब्धि लिए देश और विश्व को समाज को रोशनी देने के साथ ही हिन्दी भाषा को अद्भुत सम्मान देने दिलाने वाला डॉ रामशंकर चंचल के
दिल और आत्मा में विराजमान पचास सालों से जल रहा है सृजन दीप, हालात कुछ भी हो, कितना कुछ खोया है इस साधक डॉ रामशंकर चंचल ने, जो देख, सुन कर चौका देता है फिर भी वह लगा रहा सदा ही अपने सृजन दीप को रोज़ रोज़ जलाएं रखते हुए, बेहिसाब अद्भुत लेखन के साथ सैकड़ों कृतियों के साथ स्वर में पेश किए सैकड़ों वीडियो, यूंट्यूब चैनल पर दस्तक देने के साथ कितनी ही बड़ी संख्या में उपलब्धियां हासिल करते हुए देश और विश्व में साहित्य गजत में चर्चा बना हुआ झाबुआ जिले के आदिवासी पिछड़े अंचल झाबुआ को गौरव सम्मान दिलाया
सचमुच बेहद चौंकने वाला यह सृजन दीप है डॉ रामशंकर चंचल के नाम से जाना जाता है जो आज किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं
केवल कर्म को ईश्वर मानते वाला यह सृजन दीप पचास सालों से सतत् सक्रिय है , कितनी ही विषम स्थिति में भी सृजन कर सदा ही जलता हुआ हिंदी भाषा को रोशन करने वाला डॉ रामशंकर चंचल जो आज भी अपनी अद्भुत ऊर्जा से विश्व स्तर पर दस्तक देता जीवंत सजीव लेखन करने में व्यस्त है और मस्त हैं , उसके परिणाम, सम्मान उपलब्धि से कोई लेना देना नहीं बस कर्म कर ईश्वर को भेंट किया और फिर दूसरे दिन नया कुछ ईश्वर कृपा से ही सदा ही होता रहा लेखन, इससे ज्यादा कुछ नहीं जानते हुए डॉ चंचल एक ही बात सदा कहते आए हैं कि , में कुछ नहीं जानता हूं कितना लिखा है, क्या लिखा है और क्या हुआ है सब कुछ राम जाने, वह प्रेरित करता है और लिखता आया है वह जाने सब कुछ
जिसे ईश्वर कहते है, मेरा काम फिर्फ लेखन जो मन आत्मा से निकल आता है
प्रणाम करता हूं सदा ही उस ईश्वर को जो साथ देता हुआ सार्थक सृजन के साथ जिंदा रखें हैं, जो कुछ लिखा उसी ईश्वर की इच्छा से, जो उसने लिखाया है




