साहित्य

धवल चाँदनी की रजनी में

शशि कांत श्रीवास्तव

इस धवल चाँदनी की रजनी में
उपवन की कलियाँ चिटक रहीं हैं
शबनम की अमृत बूंदों से मिलकर,
कुछ पुष्प बने कुछ कली बनी,
जहाँ कमलिनी चमक रही है
वहीं रात की रानी महक रही है,
इस धवल चाँदनी की रजनी में,
फिर से जी लें,
यादों के उन स्वर्णिम पल को,
जो मन को कितना हर्षाते थे ,
पत्तों से छनकर आती वो किरणे
कैसे खेला करती थीं -वो,
तुम्हारे अधरों और कपोलों से,
धवल चाँदनी की इस रजनी में
आओ –प्रिये…,
चलो….. चलें… उपवन में,
उम्र के इस दहलीज पर आकर,
फिर से जी लें…..
जीवन के उन मधुरिम पल को,
जीवन के उन मधुरिम पल को ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना

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