साहित्य

आओ फुलझडियो का उत्सव मनाएं

पद्मा मिश्र

आओ फुलझडियो का उत्सव मनाएं
बिहंस रही रोशनी धरा और अंबर में
फुलझडियो सी जिंदगी है जीवन के दर्पण में
पुलकित मन झूम झूम गाएं गीत सृजन के,
आओ हम आलोकित हर मन कर जाएं,
आओ फुलझडियो का उत्सव मनाएं

दीपों की माला में बांध लिया मन को
किरण किरण रोशनी की,सिहराती तन को
आओ सखी नभ से आलोक मांग लाएं
आओ फुलझडियो का उत्सव मनाएं,

चहुं दिशि बिखराती रुप की छटाएं ,
जगमग कर तिमिर को,प्रकाश भर जाएं
जीवन का हर पल प्रदीपित हो जाए
दूर हों निराशा की उमड़ती घटाएं
आओ फुलझडियो का उत्सव मनाएं,

यह प्रकाश का पर्व —-

यह प्रकाश का पर्व,तिमिर का नाश करेगा,
ज्योतिर्मय जीवन में नव-विश्वास भरेगा,
तुमएक दिया देहरी पर ज्योतित कर देखो,
शत शत अंधियारों का विमल उजास बनेगा,
यह प्रकाश का पर्व तिमिर का नाश करेगा,
सूने घर आँगन में सिमटी यादों को,
सपनों के नील गगन में विचरण करने दो,
जब तोड़ सको मोती से सभी नखत नभ के,
अपने आँचल में उन्हें समर्पित होने दो ,
यह आँचल का दीप प्रबल दिनमान बनेगा,
यह प्रकाश का पर्व तिमिर का नाश करेगा,
पर जिनके घर में अँधियारा ठहर गया,
उस अंध-तिमिर-जीवन में सूरज ढलने दो,
हैं असंख्य दीपों की झिलमिल तारावलियां,
बस एक दिया उनके आँगन में जलने दो,
वह एक अकेला दीप खुशी का मान बनेगा ,
यह प्रकाश का पर्व तिमिर का नाश करेगा,
है भूख,गरीबी,हिंसाके अनगिन नरकासुर,
तुम शक्ति स्वरुप बनो,अनय का नाश करो,
जन मन की धूमिल होती आशाओं में,
प्रज्वलित दिवाकर सा जीवन का त्रास हरो,
यह अमर दीप मन के सारे संत्रास हारेगा,
यह प्रकाश का पर्व तिमिर का नाश करेगा,–पद्मा मि
पद्मा मिश्रा जमशेदपुर झारखंड

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