
कार्तिक मास की कृष्ण तिथि पर, नरका चतुर्दशी आई।
नरकासुर के अत्याचारों से, धरा स्वयं शरमाई॥
सोलह सहस्र कन्याएँ रोईं, बंधन में करुण पुकार।
कृष्ण सुदर्शन धारण कर के, पहुँचे तुरत उद्धार॥
सत्यभामा रण में उतरीं, लेकर वीर शस्त्र महान।
नरकासुर को मार विधाता, पूर्ण हुआ अभियान॥
यमदेव की पूजा करके, दीप जलें हर आँगन।
माताएँ आँचल फैलाकर, देती संतति जीवन॥
कूड़े पर यम दीप रखे जब, शाम ढले संसार।
सद्भाव प्रेम जगाने वाला, पावन ये उत्सव प्यारा॥
गणपति-लक्ष्मी पूजन होकर, जगमग देहरी द्वार।
दीपों से आलोकित जग है, खुशियों का त्योहार।।
डाॅ. सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




