
अंधेरा दूर कर दीपक,करे हर ओर उजियारा।
अनूठा पर्व दीपों का, लगे सबको बहुत प्यारा ।
सभी सामान खुशियों का,खरीदे लोग खुश होकर।
करे घर की सफाई फिर,सजाएं माँड़णा सुन्दर।।
जलाकर दीप ज्योतिर्मय,भरे उल्लास अगजग में।
रखे दीपक पड़ौसी के,सजे घरबार हर द्वारा ।।
जलाते दीप घर-घर में, जगाते आस का तारा
अनूठा पर्व दीपों का, लगे सबको बहुत प्यारा ।।
लिए धन-धान्य लक्ष्मी जी, सदा आती सभी द्वारे ।
करे सब प्रार्थना उनसे, दिलों में कामना धारे ।।
सभी पूजा सभी जप-तप, उचारे मंत्र सब पावन ।
करे सब आरती मन से,मिले आशीष तब न्यारा।।
मिले अवकाश कामों से, भरे मन नेह फव्वारा।
अनूठा पर्व दीपों का, लगे सबको बहुत प्यारा ।।
रहे यह पॉच दिन उत्सव, भरे आलोक जीवन में ।
मिले सुख संपदा वैभव, रहे यह चाह हर मन में ।।
भरा है पाठ संस्कृति का,सभी त्यौहार खुशियों के।
सनातन मूल्य है इनमें, बहाते भक्ति की धारा ।।
सँवारे भाव जो दिल में, हटाए मन मलिन खारा ।
अनूठा पर्व दीपों का, लगे सबको बहुत प्यारा ।।
*-लक्ष्मण लड़ीवाला ‘रामानुज’*




