
दीपोत्सव पर है प्रभो,
जगमग हो घर द्वार।
ज्योति जलाऊँ प्रेम की,
बहे प्रेम की धार।।
कर मंगल मैं कामना,
माँगू खुशी अपार।
अंधकार मन का मिटे,
सुखमय हो संसार।।
चलो सभी तम दूर भगाएँ
जगमग जगमग हो चहुँओर।
हिय में प्रेम का दीप जलाएँ,
चेहरों पर खुशियों का अँजोर।
धन दौलत नहीं बंद तिजोरी,
अपनापन सच्चा धन है।
मात-पिता से सजे देहरी,
साथ सभी के जीवन है।
घर की लक्ष्मी बहु बेटियाँ,
मात-पिता का हो सम्मान।
रिश्तों में खिले प्यार की कलियाँ,
मन मंदिर में बसे भगवान।
प्रेम धुन बजे जिस घर में,
वहीं रहे लक्ष्मी का वास।
भेद नहीं नारी अरु नर में,
रिश्तों में पनपे तब विश्वास।
ये धन जन-जन अपनाएँ,
मन मंदिर सबका बन जाए।
दिल की देहरी दीप जलाएँ,
द्वेष तिमिर सब दूर भगाएँ।




