
परेशान दिखे जो कोई चलो उसे हँसाते हैं।
मन तमस मिटाने को कुछ दीप जलाते हैं।
दीपों की अवली से चलो घर को सजाते हैं।
दीपावली इस बार चलो ऐसे मनाते हैं।
जिनके कारण हम सुरक्षित खुद को पाते हैं।
सीमा पर वीर लड़ाके जो जान लुटाते हैं।
ये दो दीपक हम उन्हीं के नाम जलाते हैं।
दीपावली इस बार चलो ऐसे मनाते हैं।
झूठे अहम के जाले निज मन से हटाते हैं।
चरित्र को अपने संस्कारों से सजाते हैं।
दीपक के संग मिल के बुराई को हराते हैं।
दीपावली इस बार चलो ऐसे मनाते हैं।
खुशियों की मिठाई वंचितों को बाँट आते हैं।
सामाजिक खाईयों को चलो पाट आते हैं।
हौसले की रोशनी से बाधा तम को मिटाते हैं।
दीपावली इस बार चलो ऐसे मनाते हैं।
रावण को हरा श्रीराम लौट अयोध्या आते हैं।
उनके स्वागत में सब लोग घर को सजाते हैं।
मन में राम बसा खुद को भव पार लगाते हैं।
दीपावली इस बार चलो ऐसे मनाते हैं।
श्री कृष्ण जी की दामोदर लीला को गाते हैं।
लक्ष्मी कुबेर गजानन को घर में बुलाते हैं।
उज्ज्वल मन से प्रकाशित जग को पाते हैं।
दीपावली इस बार चलो ऐसे मनाते हैं।
बाती को नहीं इस बार अवगुण को जलाते हैं।
झूठे अहम के जाले निज मन से हटाते हैं।
परेशान दिखे जो कोई चलो उसे हँसाते हैं।
दीपावली इस बार चलो ऐसे मनाते हैं ।
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©ब्रजेन्द्र मिश्र ‘ज्ञासु’
📱7349284609
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