साहित्य

दीये जलाओ राष्ट्र निर्माण के

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दीये जलाओ राष्ट्र
समाज निर्माण के,
जननी जन्मभूमिश्च
अभिमान हमारा।!

आज्ञाकारी संतान
राम रहे,अन्याय
अत्याचार का न
नामो निशा रहे।!

लिंग भेद का दर्द नहीं,
प्राणी प्रकृति परिवार
का युग संसार रहे,!!

पढ़ती बेटी बढ़ती बेटी
अंतर द्वंद नहीं बेटी
बेटों में अंतर नहीं!

बेटी लक्ष्मी जैसी
शुभ मंगल का उपवन,
सारा जग उजियार रहे।!

नारी उत्पीड़न बाल श्रम
श्रमिक अभिशाप,
सबके अधिकार सुरक्षित
सबको उपलब्धि अवसर का
देश युग समाज काल रहे।!

हाथ उठे गर श्रम कर्म
धर्म में,भिक्षा न ले दे कोई
मूल्यों मर्यादा का संसार रहे।!

मजदूर मज़लूम मजबूर
न हो रोष प्रतिरोध न हो
कोई,उचित काम का
उचित दाम मजदूर मानव
महिमा की दौलत पूंजी का
राष्ट्र समाज रहे।!

किसान हताश निराश न
हो धरती सोने की खान रहे,
फर्ज कर्ज के मकड़जाल
आत्म शारीर का त्याग न
हो आत्महत्या का शिकार
न किसान रहे।!

कर्षती इति कृष्णः का
गोपालक किसान ग्राम
देवता अभिमान रहे!!

गांव खुशहाल आमिर
गरीब का न भेद भाव
शहर नगर डगर डगर
खुशहाली महक मान रहे।!

व्यवसायी का व्यवसाय
निर्विवाद निर्बाध हो,
उद्योगों का पहिया नित्य
निरंतर चलता जाए
गति जाम न हो निर्वाध रहे!!

युवा शक्ति उत्साहित राष्ट्र
निर्माण की सार्थक ऊर्जा न
उग्र उग्रवाद रहे!!

युवा उत्साह उल्लास
शौर्य का नित शंखनाद
बुजुर्ग प्रेरणा का सम्मान रहे।!

आदर्श समाज राष्ट्र न
भय भ्रष्टाचार रहे,त्वरित
न्याय रामराज्य का भारत
विश्व प्रधान रहे।!

हर रोज खुशियों रंगों का
तीज त्योहार खुशहाल पल
प्रहर राष्ट्र समाज रहे!

बच्चा बच्चा राम
कुपोषण का न शिकार रहे
मातृत्व सुख में नारी को
अभिमान रहे।!

जवान देश की सरहद पर
निर्भीक निडर सरहद का
फौलाद रहे!!

राम विजय अच्छाई
सच्चाई की विजय
शक्ति की अर्घ आराधना
नव रात दिन का पल पल
वर्ष युग दिन रात रहे।!!

*नंदलाल मणि त्रिपाठी*
*पीताम्बर, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश*

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