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दिवाली का आध्यात्मिक महत्व।

(डॉ राकेश पाण्डेय-इंदौर)

दिवाली का आध्यात्मिक महत्व यह सिखाता है कि यह केवल एक भव्य उत्सव नहीं, बल्कि आत्मज्ञान, शुद्धि और अंतःप्रकाश का प्रतीक है। यह पर्व बादिवाली का आध्यात्मिक महत्व यह सिखाता है कि यह केवल एक भव्य उत्सव नहीं, बल्कि आत्मज्ञान, शुद्धि और अंतःप्रकाश का प्रतीक है। यह पर्व बाहरी प्रकाश से अधिक, भीतर की जागृति और आत्मा के उजाले का प्रतिनिधित्व करता है ।प्रकाश का प्रतीकदीवाली को “प्रकाश का पर्व” कहा जाता है, क्योंकि यह अंधकार (अज्ञानता और नकारात्मकता) पर प्रकाश (ज्ञान और सत्य) की विजय का द्योतक है। जलता हुआ दीपक आत्मज्ञान का प्रतीक है जो व्यक्ति को आंतरिक रूप से प्रकाशित करता है और उसे धर्म, सत्य और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।आत्मा की शुद्धि और नवीनतादीपावली से पहले घर की सफाई को आंतरिक शुद्धि का प्रतीक माना गया है। यह दर्शाता है कि जैसे हम अपने घरों को स्वच्छ करते हैं, वैसे ही हमें अपने मन, अहंकार और बुरे विचारों को भी शुद्ध करना चाहिए ताकि आत्मा पवित्र और उज्ज्वल बनी रहे ।आत्मिक समृद्धि और लक्ष्मी पूजनलक्ष्मी पूजन का अर्थ केवल भौतिक धन प्राप्त करना नहीं है बल्कि आत्मिक धनी बनना भी है। यह पूजन व्यक्ति को आंतरिक शांति, संतोष और औदार्य का संदेश देता है। सच्चा धन वह है जो आत्मा को शांति और करुणा से भर दे।‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का दर्शनउपनिषद की यह प्रार्थना “अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो” दीपावली का मुख्य आध्यात्मिक संदेश है। इसका सार है कि व्यक्ति को अपने भीतर के अंधकार—अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या—से मुक्त होकर आत्मबोध और सत्य के प्रकाश की ओर अग्रसर होना चाहिए ।दीया और आत्मा का संबंधब्रहमकुमारी परंपरा में दिया मिट्टी के शरीर का प्रतीक है और उसकी ज्योति आत्मा की पहचान है। घी या तेल को परमात्मा का ज्ञान बताया गया है जो आत्मा की लौ को सदा प्रकाशित रखता है। इस तरह, यह पर्व आत्म-जागृति, उदारता और जीवन में प्रकाश फैलाने का आह्वान करता है ।दिवाली का सच्चा आध्यात्मिक अर्थ है – आत्मा को परमात्मा से जोड़कर आंतरिक प्रकाश, प्रेम, करुणा और शांति से परिपूर्ण होना। यह वह समय है जब व्यक्ति अपने भीतर के दीप को प्रज्वलित कर पूरे संसार में शुभता, सद्भाव और सदाचार का संदेश फैलाता है ।दिवाली हरी प्रकाश से अधिक, भीतर की जागृति और आत्मा के उजाले का प्रतिनिधित्व करता हैदिवाली।प्रकाश का प्रतीकदीवाली को “प्रकाश का पर्व” कहा जाता है, क्योंकि यह अंधकार (अज्ञानता और नकारात्मकता) पर प्रकाश (ज्ञान और सत्य) की विजय का द्योतक है। जलता हुआ दीपक आत्मज्ञान का प्रतीक है जो व्यक्ति को आंतरिक रूप से प्रकाशित करता है और उसे धर्म, सत्य और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है ।आत्मा की शुद्धि और नवीनतादीपावली से पहले घर की सफाई को आंतरिक शुद्धि का प्रतीक माना गया है। यह दर्शाता है कि जैसे हम अपने घरों को स्वच्छ करते हैं, वैसे ही हमें अपने मन, अहंकार और बुरे विचारों को भी शुद्ध करना चाहिए ताकि आत्मा पवित्र और उज्ज्वल बनी रहे ।आत्मिक समृद्धि और लक्ष्मी पूजनलक्ष्मी पूजन का अर्थ केवल भौतिक धन प्राप्त करना नहीं है बल्कि आत्मिक धनी बनना भी है। यह पूजन व्यक्ति को आंतरिक शांति, संतोष और औदार्य का संदेश देता है। सच्चा धन वह है जो आत्मा को शांति और करुणा से भर दे ।‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का दर्शनउपनिषद की यह प्रार्थना “अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो” दीपावली का मुख्य आध्यात्मिक संदेश है। इसका सार है कि व्यक्ति को अपने भीतर के अंधकार—अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या—से मुक्त होकर आत्मबोध और सत्य के प्रकाश की ओर अग्रसर होना चाहिए ।दीया और आत्मा का संबंधब्रहमकुमारी परंपरा में दिया मिट्टी के शरीर का प्रतीक है और उसकी ज्योति आत्मा की पहचान है। घी या तेल को परमात्मा का ज्ञान बताया गया है जो आत्मा की लौ को सदा प्रकाशित रखता है। इस तरह, यह पर्व आत्म-जागृति, उदारता और जीवन में प्रकाश फैलाने का आह्वान करता है ।दिवाली का सच्चा आध्यात्मिक अर्थ है – आत्मा को परमात्मा से जोड़कर आंतरिक प्रकाश, प्रेम, करुणा और शांति से परिपूर्ण होना। यह वह समय है जब व्यक्ति अपने भीतर के दीप को प्रज्वलित कर पूरे संसार में शुभता, सद्भाव और सदाचार का संदेश फैलाता है।

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