साहित्य

नेता जी- एक स्मृति

वीणा गुप्त

आजादी जो आज है हमने देखी।
आजादी जो आज है हमने पाई।
आओ,आज विचारें मिलकर ,
किसने यह दिलवाई।

राष्ट्र-स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु,
किस-किसने बलिदान दिया।
तन मन धन सर्वस्व लुटाकर
इतिहास में अपना नाम किया।

अनगिन थे अनमोल रत्न,
जो मातृ-भू पर कुर्बान हुए।
नेता जी नेता थे उन सबके ,
देश- हित अर्पित प्राण किए।

था व्यक्तित्व अनूठा उनका,
वे भी पितु-जननी के प्यारे थे।
स्वतंत्रता -देवी के उपासक,
भारत के उजले सितारे थे।

बुद्धिमान थे,तेजवान थे।
सैन्य- संगठन में महान थे।
वीरव्रती वे,धैर्यवान थे।
देश ही उनका मन-प्राण थे।

देश-भक्ति ही उनका धर्म था।
देश सेवा ही मात्र कर्म था।
भारत को आजाद कराना।
उनके जीवन का मर्म था।

शोणित-हस्ताक्षर करने को
वीरों का आह्वान किया।
चले कदम से कदम मिला ,
आजादी का पैगाम दिया।

उनकी भाषा सबका स्वर थी।
उसमें सागर की हलचल थी।
ज्वालामुखी धधकता मन में,
वक्र-भृकुटि में प्रलय प्रबल थी।

भारत मुक्ति के परवाने बन,
वे देश-दीप पर मंडराए थे।
व्यथा-गरल पी -पी कर वे,
वे नीलकंठ बन आए थे।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल,
जब अंबर पर छाए थे।
आजाद हिंद सेना गठन कर,
बरमा तुरंत सिधाए थे।

सपना देखा था भारत को,
फौरन आजाद कराने का।
रंगून पर किया अधिकार,
लक्ष्य अरुणांचल जाने का

प्रथम कदम यह आजादी का,
गूंज उठा जयकार था।
तुम ही तो थे सच्चे नेता ,
उत्साह तुम्हारा अपार था।

भारत के जनमानस में,
बस तुम ही तुम छाए थे।
तेरे स्वागत हित जनता ने
अपने पलक बिछाए थे।

सहसा ही तुम रहस्य हो गए।
अभी यहीं थे,अभी खो गए।
धरती अंबर रहे बुलाते,
तुम न लौट कर आए थे।

रही बुलाती भारत माता,
प्यारे बेटे वापस आओ।
देखो दिल्ली बुला रही है,
लालकिले पर ध्वज फहराओ।

चिर प्रतीक्षा थी यह कैसी,
रह -रह प्राण सिसक उठते थे।
तुझे रक्त देने को आतुर,
लाखों वीर आहें भरते थे।

पंद्रह अगस्त सन् सैंतालिस को,
जब भारतमाता मुस्कराई थी।
प्यारे सुभाष,मेरे सुभाष,
याद तुम्हारी बहुत आई थी।

यदि सुभाष तुम होते उस दिन,
देश के दो टुकड़े न होते।
अंग्रेजों की कोई चाल न चलती।
भाई-भाई दुश्मन न होते।

मिटकर भी तुम नहीं मिटे हो,
हमारी स्मृतियों में जीवित हो।
हम तुम्हारे चिर ऋणी रहेंगे।
तुम से ही प्रेरित हो-होकर,
देश हित सौ-सौ बार मरेंगे।

आजादी जो आज है हमने देखी,
आजादी जो आज है हमने पाई।
आओ आज विचारें मिलकर,
किसने यह दिलवाई

वीणा गुप्त
नई दिल्ली

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