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थोड़ी सी ही उम्र प्रेम के लिए भी कम है।
न जाने आदमी क्यों ओढ़े नफरत का गम है।।
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पेड़ की खूबसूरती फूलों से,व्यक्ति की वाणी से है।
व्यक्ति का सम्मान धन से नहीं अपितु दानी से है।।
क्यों झूठ को प्रणाम,सच से फेरता मुंह एक दम है।
थोड़ी सी ही उम्र प्रेम के लिए भी कम है।।
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व्यवहार से हम सब का व्यक्तित्व महक जाता है।
जरा प्यार से देखो तन रोम-रोम चहक जाता है।।
वही सच्चा जीवन जब किसी के लिए नेत्र नम हैं।
थोड़ी सी ही उम्र प्रेम के लिए भी कम हैं।।
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सदा नया करने की कोशिश जीवन की सार्थकता है।
सदा स्वार्थ में जीना दिखाता जीवन की अनर्थता है।।
वह जीवन जाता बिलकुल व्यर्थ जब केवल दंभ है।।
थोड़ी सी ही उम्र प्रेम के लिए भी कम है।।
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जितनी भी मिली जिंदगी काम कुछ नायाब करो।
हर दिल में यादें रह जाएं यों कामयाब तुम बनो।।
चार दिन की रौनक कि बस राख बन जाता तन है।
थोड़ी सी ही उम्र प्रेम के लिए भी कम है।।
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रचयिता।।एस के कपूर “श्री हंस”
बरेली।।
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