
भगाओ तिमिर को कि डेरा न डाले।
दिखाओ जगत को सखी तुम उजाले।।
कभी राह भटके पथिक अब न कोई,
जला दो तनिक दीप ठोकर न खा ले ।।
सखी राग छेड़ो खुशी आज झूमे।
सभी आज मिलकर चलो गीत गा ले ।।
थको मत पथिक तुम मंँजिल भी निकट है।
अभी मत न देखो पड़े आज छाले ।।
चलो फिर उसी से करें बात कोई।
पड़ा जो कभी से खुले आज ताले।।
गहो पथ वही तुम सदा से सही है।
सदा साथ अपने कन्हैया चला ले।।
वही गीत गाओ जगत जो सुधारे।
सभी के दिलों में जगह तू बना ले।।
डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली




