
अलबेला मौसम आया, फूलों की मुस्कान सजी,
शरद की यह प्यारी बेला, मन में मधुर तान बजी।
हवा में हल्की ठंड घुली, गालों को सहला जाती,
सूरज भी अब कोमल बनकर, मंद किरणें बरसाती।
कुहासे की चादर ओढ़े, भोर की बेला लजाती,
ओस की बूँदों से भीगी, घास मुस्कान दिखाती।
पेड़ों पर हरियाली झलके, झरते पत्तों की थिरकन,
झीलों में झलके चाँदनी, रजनी गाए मधुर रागन।
पक्षी गुनगुन करते झुंडों में, नभ में उड़े अनोखे रंग,
प्रकृति के इस मधुर सुरों में, मन भी गाए उमंग संग।
सुगंधित बयार चली है, महके हर उपवन-आँगन,
मौसम की कोमल बाहों में, विश्राम करे पावन जीवन।
फूलों से सजी पगडंडी, चलती जैसे कोई कहानी,
हर पग में है संगीत घुला, मधुरता की अमिट निशानी।
अलबेला मौसम आया, जीवन में नूतन राग है,
शरद की यह प्यारी बेला, ईश्वर का अनुपम दान है।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




