
दृश्य बड़ा ही सुहाना लगता है प्रिये,
इस पार क्षितिज के….,
जब मिलते हैं -दूर कहीं धरा पर,
अंबर और धरती देते हैं संकेत मिलन का,
अवसान दिवस का सूर्यास्त रूप में
और,
बिखरा देता है अंबर और धरा -पर
एक सुनहरी सिंदूरी पीली आभा को,
जो लगती है ,अप्रतिम और नयनाभिराम,
दूर जहाँ मिलते हैं धरती और गगन -क्षितिज पर,
दृश्य बड़ा ही सुहाना लगता है प्रिये।
क्षितिज के उस पार ,न जाने क्या होगा,
जब चाँद उदित होता है नभ में,
अगणित तारों के संग -और
धरा पर बिखराता है शीतलता -चन्द्र किरणों के संग,
देता —-प्रेम और प्यार का संदेश,
करता जीवन में संचार आशा का,
और , करता खत्म निराशा को,
दृश्य बड़ा ही सुहाना लगता है प्रिये।
क्षितिज के उस पार ,न जाने क्या होगा,
जब पड़ती हैं शबनम की बूंदे,
उन सोई–अलसाई कलियों पर,
और वहीं मुरझाई वल्लरियों पर,
चन्द्र किरणों की कोमल स्पर्श के संग,
वो बन फूल कली से जीवन का राग सुनाती है,
जो है -छणभंगुर ….,अस्तित्वहीन -पर,
जाते जाते दे जाती वह एक सुखद,
अनुभूति कोअपनी भीनी भीनी सुगंध
रूप में ….,
क्योंकि…..,
होते ही स्पर्श दिवाकर की रश्मि संग,
जीवन हो जाता है पूरा उनका,
इस नश्वर संसार में,
दृश्य बड़ा ही सुहाना लगता है प्रिये,
क्षितिज के उस पार ,न जाने क्या होगा ||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब



