
अकेला रहना, साधारण बात नहीं है , पर वह है बेहद सार्थक उपलब्धि लिए,आपके अद्भुत सोच चिंतन को बढ़ावा देती हुई, शिव के तीसरे नेत्र को दस्तक देती है, भीड़ से अलग , आपका सोच चिंतन को जन्म देती है
अकेला होना सजा नहीं बल्कि वरदान है
अकेला होना आत्मा की शुद्धता और सुकून है जो आत्मा से निकल कर सामने आया उसे सुनती और अमल करने के साथ सकारात्मक सोच चिंतन को बढ़ावा देना है
मेरा अनुभव है कि अकेला होना नसीब है कि आपको भीड़ से अलग कर खुद की पहचान बनाने में मदद करती है और यह अद्भुत सुखद सुख सुकून ईश्वर का उपहार है
प्रायः लोग उसे नकारते हुए कहते है, मिलों भाई सब से बाहर निकल कर
क्या अकेले रहते हैं यह बात नादान लोग करते हैं जो, अकेले होने के महत्व को,अस्तित्व को नहीं समझ पाते हैं और अक्सर यह लोग भीड़ में मस्त रहते हुए भीड़ तंत्र जैसे ही सोच चिंतन लिए हो जाते है
अकेला होना और अपने मानवीय जीवन के महत्व को अस्तित्व को समझना है जो आपको सचमुच सही दिशा ज्ञान बुद्धि देता है और जीवन सार्थक कर जाता है
मेरा तो मानना है कि हर व्यक्ति को प्रतिदिन कम से कम एक या दो घंटे खुद के लिए निकालते हुए, अकेले में रहना चाहिए और अपने प्रतिदिन के कर्म का मूल्यांकन करना चाहिए ताकि आप भविष्य को सुधार कर अच्छा बहुत ही अच्छा कार्य कर सकते हैं और आत्मा विश्वास से
भीड़ का दिमाग एक जैसा होता है समाज शास्त्र भी यही कहता कि भीड़ सब के दिमाग को एक जैसा कर देती हैं इसे में सही दिशा ज्ञान बुद्धि संभव नहीं है, भीड़ में अक्सर लोग कुछ अपने स्वार्थ में बात करते हुए दिखाई देते हैं और हम वह गलत होते हुए भी प्रभावित हो अमल करने में लग जाते है और खुद की पहचान सोच चिंतन को जागृत नहीं करते हैं
भीड़ से अलग रहे और खुद की पहचान बनाने के साथ देश समाज और दुनिया को कुछ सुख दे जो भविष्य के लिए प्रेरणा स्त्रोत हो
और यह तभी संभव है जब आप
खुद का सोच चिंतन लिए जाने की कोशिश करें
यह जो कुछ कह रहा हूं , मेरा अनुभव है और सार्थक उपलब्धि लिए परिणाम हैं जो सदा ही महसूस किया , मैं नहीं और भी अनेक है दुनिया में जो अकेलेपन के समर्थक हैं और वह भी यूं ही नहीं कहते है उनके अपने अनुभव पर दस्तक देते हुए बात करते हैं
बस बेहतर है कि ज्यादा नहीं तो एक या दो घंटे अवश्य ही भीड़ से अलग रहे और खुद के महत्व को अस्तित्व को साबित करते हुए जीवन सार्थक कर सभी को सुख सुकून दे
डॉ रामशंकर चंचल झाबुआ मध्य प्रदेश



