
गीत
दीवाली कल बीत गई है,चलो दीप को नहलाएं।
घर के सारे दीप उठा सब,मन को अपने बहलाएं।।
रात जगी थी रौशन देखो,दिन लेता है अंगड़ाई।
सड़कों पर पसरा सन्नाटा,अम्मा थोड़ी घबड़ाई।।
कहाँ सफाई शुरू करूं मैं,कैसे चूल्हा जल पाए।
घर के सारे दीप उठा सब,मन को अपने बहलाएं।१।
कुछ दीपों को उठा उठा कर,धागा उसमें डाल रहे।
खेलें हम सब बना तराजू,सपने कुछ-कुछ पाल रहे।।
तेल बचे दीपों में जो है,उनसे खाना कुछ बन पाए।
घर के सारे दीप उठा सब,मन को अपने बहलाएं।२।
आतिशबाजी से सड़कें भी,घायल जैसे समर धरा।
गोल जलेबी रॉकेट से भी,धरती अंबर सघन भरा।।
थक कर सारे चूर हुए हैं,ताश खेल में
छल पाए।
घर के सारे दीप उठा सब,मन को अपने बहलाएं।३।
जाने को तैयार खड़ा है,मां की आंखें भीग गईं।
छुटकी बिटिया बहुत दुलारी,सब पर देखो रीझ गई।।
कब आओगे पूछे अम्मा,पकड़ गाल जब सहलाए।
घर के सारे दीप उठा सब,मन को अपने बहलाएं।४।
डाॅ.राजेश श्रीवास्तव राज
गाजियाबाद



