
गिरता जाता मानव है मन
स्वार्थ के चक्कर में सब गुड़
गोबर कर रहा इंसान।
ज्ञान के अभाव में वंचित है ,
हित का अहित कर रहा इंसान।
अंधविश्वास का मुखौटा पहने है
इंसान ।
हैवान बनकर लूट भी रहा
मानवता को इंसान।
अंधविश्वास के जाल में फंस कर
खो रहे है मानवता इंसान।
जीवन को बोझिल बना बैठे है
बेअक्ल इंसान ।
भ्रमित जीवन खोखला कर रखा
झूठे दिखावे के चक्कर में ।
अंधविश्वास की दुनिया में
नकारात्मक विचारों को बढ़ावा
देता है इंसान ।
भूल बैठा है मालिक ईश्वर भी है
जो चलाता है संसार ।
पाखंडी झूठे मक्कारो की बातों
को मानकर घर परिवार दाव लगा
बैठा है इंसान।
खुशियां बेशुमार खोने चला है
अंधविश्वास में पढ़कर इंसान ।
डॉ संजीदा खानम शाहीन



