
दूसर दिन जब भोर सजे, मन में नया उजास,
खरना का दिन पावन लेकर, आता मधुर सुवास।
सूर्यास्त पश्चात उपवासिनी, करती अटूट उपवास,
भक्ति, तपस्या, अनुशासन का, अद्भुत यह विश्वास॥
गंगाजल से स्नान करि, करती पूजा शुद्ध भाव,
गुड़-चावल का प्रसाद सजाती, तन-मन पावन छाव।
सात्विकता की पराकाष्ठा, सजी हुई हर छाँव,
दीपक की लौ में झलके, श्रद्धा का अनुपम छाव॥
खरना की रात अनोखी, पावन हो जाती धरा,
गुड़-चावल की खुशबू घुले, भक्ति रँग दे गगन सारा।
संग-संग बँधे अपनापन, मिटे मन का सारा जरा,
सादगी में सौंदर्य खिले, जैसे सुरभित अमल धरा॥
सूर्यदेव से वरदान माँगे, मंगल जीवन का द्वार,
हर संकट हर ले मइया, भर दे सुख-संपन्न संसार।
खरना से शुरू तप गहरा, छठी पूजा का आधार,
आस्था के दीप जलाकर, करती भक्तिन सत्कार॥
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




