
सूर्य षष्ठी के महापर्व की अपनी अनोखी कहानी है,
कार्तिक मास के पंचम दिन से शुरू होती इसकी रीति है।
अस्ताचल आदित्य हो या
उदीयमान भगवान भास्कर
मन, वचन और कर्म से
ये सभ्यता हमें निभानी है।
तीन दिन निर्जला व्रत धारण कर
छठ मैया को महिलाए मनाती है
पूर्ण करो माँ हर मनोकामना
धूप, दीप, फल व नारियल से अर्घ्य करती है।
तन शुद्ध, मन शुद्ध, विचार शुद्ध हो जाते है
ललिता षष्ठी पूज कर,
एक अनोखा तेज हम पाते है
सूर्य के प्रतापी तेज से रोग, शोक, विनाश सब नष्ट हो जाते है।
सात घोड़ो पर सवार हो कर
दिनकर धरती पर आते है
मान सम्मान और तेज का वरदान दे जाते है
ये छठ मैया का पूजन
होना बहुत जरूरी है
नारित्व को कमजोर बताने वाले को लिए
शक्ति का संचार है नारी
ये बताना जरूरी है
खुशियों का पर्व है सूर्य षष्ठी
संतान प्राप्ति का वरदान है सूर्य षष्ठी,
अनोखा तेज व वर्चस्व प्रदान करता है सूर्य षष्ठी।
नकारात्मक भावो का संहार है सूर्य षष्ठी
सकारात्मक ऊर्जा का संचार है सूर्य षष्ठी
निकेता पाहुजा ✍️
रुद्रपुर उत्तराखंड




