साहित्य

नशा

योगेश ग़हतोड़ी "यश"

नशा सिर्फ दारू का नहीं, नशा नहीं होता धुएँ का,
ये तो मन के मोह का जाल है, अहंकार के हुएँ का।
जब भीतर जाती है एक बूँद, चेतन मंद हो जाए,
विवेक का दीपक बुझ जाता, भ्रम मन में समाए॥

देह का नशा, धन का नशा — दोनों ज़हर समान,
क्षण भर सुख का देता रस, फिर करता गुमनाम।
शक्ति, पद और ज्ञान का भी नशा बड़ा घातक है,
जो आत्मा से दूर करे, वही पतन का कारण है॥

जब इंसान नशे में डूबा, भूल गया अपना घर,
तब ईश्वर भी लगने लगता, जैसे माया के पर।
सत्य की रोशनी भूल गया, खोया आत्म विचार,
भोग-विलास के बंधन में, बाँध लिया संसार॥

देखो उस मानव को जो मद में है, सत्ता में है चूर,
खुद की पूजा करता रहता, बनता बड़ा मगरूर।
भूल गया सेवा का रास्ता, करुणा का मधुर भाव,
नशे में खोया वो स्वयं, बन बैठा दुखद स्वभाव॥

नशा तोड़ देता जीवन-रेखा, करता मन अपवित्र,
राग, वासना, काम में डूबा, होता अंत विचित्र।
एक चिंगारी उठती जब, वासना की आग में,
आत्मा झुलसती रहती है, सदी-सदी के भाग में॥

हे साधक! यदि तू चाहे, फिर उजियारा पाना,
छोड़ दे हर झूठा नशा, सच्चा मार्ग अपनाना।
नशा नहीं केवल पीने का, ये सोचों का जाल,
जो विवेक से करे विद्रोह, वही नशा है काल॥

जो मन से जाग्रत, निर्मल हो, रखे आत्मा की ज्योति,
वह जान ले — अज्ञान का नशा, है मृत्यु की ओट।
सच्चा नशा तो प्रेम का हो, जो भक्ति में बह जाए,
जो अहं मिटा दे तन-मन का, ब्रह्म में लय हो जाए॥

✍️ योगेश ग़हतोड़ी “यश”

 

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