
गंगा माँ की गोद में, मेरा जीवन बीता जाए,
हर साँस में तेरा नाम, हर पल तेरा साया पाए।
तेरे जल से सींचा मन, पवित्र हुआ हर विचार,
तेरी लहरों में सुनता हूँ, ईश्वर का पुकार।
तेरे तट पे बैठा मैं, कई बार खुद को पाया,
तेरे संग बहकर मन ने, सब दुःख-दर्द भुलाया।
तेरी धारा में झलके, शांति का अनंत रूप,
तू ही मेरी साधना, तू ही मेरा अनूप।
जब जीवन का दीप बुझे, और तन हो जाए मौन,
तेरी गोद में रखना माँ, यही मेरा अंतिम कण।
ना राज चाहूँ, ना वैभव, बस तेरा चरण स्पर्श,
तेरे संग मिल जाऊँ मैं, मिट जाए मेरा हर्ष।
अस्थियाँ मेरी तुझमें मिलें, जैसे बूँद सागर में,
नाम न बचे मेरा, बस तेरा स्मरण हो जग में।
गंगा माँ तू साक्षी बनना, मेरे हर कर्म की,
तेरी शरण में पूर्ण हो, यह कथा मेरे धर्म की।
कुलदीप सिंह रुहेला
सहारनपुर उत्तर प्रदेश




