
मां तुम बिन अधूरा है सब कुछ, अनमना मेरा अंतर्मन
कैसे कह दूं बड़ी हूं अब, तेरे आंचल में छिपा बचपन
हर पल तुझको ही याद करे, उदास ये सारा है उपवन
हवा पागल हो पूछ रही, क्यों हंसी की न कोई है खनखन
घर आंगन तुमको ढूंढ रहा, तुलसी का दीपक करे प्रश्न
हैरान है सांझ की बेला, मंदिर की घंटी करे रुदन
रसोई चुप चुप सी ठिठक रही, इंतज़ार कर रहा है दर्पण
खिड़की दरवाज़े गुमसुम हैं, शोर कर रही बावली पवन
चहक उठो अब जल्दी से, बेसब्रा हो रहा है मेरा मन
सिर पर रख दो हाथ तुम मां, रूठा रूठा मेरा जीवन
रिया अग्रवाल
फरीदाबाद हरियाणा




