साहित्य

मत हो अधीर -प्रिये

शशि कांत श्रीवास्तव

मत हो इतना अधीर प्रिये
जरा…,
साँझ को ढ़ल जाने तो दो
निशा जो आ रही -प्रिये
उसे भी जवाँ तो होने दो,
फिर करना अभिसार प्रिये
मत हो इतना अधीर -प्रिये |
जरा…,
तारों को ढ़ल जाने तो दो
शबनम को सो जाने दो
चंद्र किरण को आने तो दो,
फिर करना अभिसार प्रिये
मत हो इतना अधीर -प्रिये |
जरा…,
उनसे खेल तो लेने दो
दो पल को उनको चूम तो लूँ
मदमस्त पवन संग उड़ तो लूँ,
उषा की लाली देख तो लूँ
अंतरमन में उसे समा तो लूँ ,
फिर करना अभिसार प्रिये
मत हो इतना अधीर -प्रिये ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
14-11-2021=23:24hr.

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