
कार्तिक मास शुक्ल नवमी, दिन शुभ मंगल धाम।
आंवला पूजन पर्व ये, अमृत तुल्य नाम।।
जब जग सारा डूब गया, जल में सृष्टि समाई।
ब्रह्मा के नयनों से तब, बूंद धरा पर आई।।
उससे अंकुर फूटा तब, आंवले का वृक्ष।
फल अमृतमय झूम उठा, भर गया सुगंधित पक्ष।।
औषधि, बल, आरोग्य का, यह अद्भुत वरदान।
काटो, पीसो, उबाल दो—न घटे गुणों का मान।।
मधुमेह हरता, तन सुधा, च्यवन ऋषि की शान।
च्यवनप्राश में है भरा, इसका रस महान।।
इस दिन वृक्ष तले बैठ, जन करते हैं पूजन।
कथा सुनाते प्रेम से, भर जाता वातावरण।।
था राजा इक धर्मनिष्ठ, रानी भक्त सुजान।
रोज सवा मन स्वर्ण के, आंवले का दान।।
पुत्र, बहू ने सोच लिया, व्यर्थ धन बर्बाद।
निकाले दोनों वृद्ध को, कर दिए घर से निष्कास।।
वन में बैठे ध्यानमग्न, किए उपवास अनेक।
सात दिवस तक जल न लिया, न की तनिक अभेष।।
प्रभु हुए प्रसन्न तब, दर्शन दिए साक्षात।
राजा फिर समृद्ध हो, पाया स्वर्ण प्रभात।।
राजपुत्र निर्धन हुआ, भीख मांगता फिरता।
सुन कर आया पास में, पिता का यश धरता।।
रानी ने पहचानकर, रखा काम लगवाय।
दिया परिश्रम से अधिक, मान सिखाया जाय।।
जब बहू ने आँसुओं से, पीठ भिगो दी थाम।
रानी बोलीं—”हम वही, पहचानो अब नाम।।”
फिर वर मांगा पुत्र ने—”ऐसी विपदा ना हो।”
रानी बोलीं—”भक्त रहे, सुख हर जनमा हो।।”
जय-जय आंवला नवमी, जय अमृत का दान।
जो पूजे श्रद्धा सहित, मिटे सभी अज्ञान।।
डाॅ सुमन मेहरोत्रा
मुजफ्फरपुर, बिहार




