साहित्य

कवि ही जीतेगा

वीणा गुप्त

रातें अनेक जब करवटें
ले-ले कर बिताईं,
तब कुछ कविता,
कुछ कहानी ,
और कुछ ग़ज़लें,
मुझसे बतियाने आईं।
मैं कल्पना में डूबा,
मेज पर धर चाय का प्याला,
टैगोरी स्टाइल में लिखने बैठा काबुलीवाला।

दो पंक्तियाँ ही लिख पाया था
कि आ धमका मेरा नंदलाला,
बोला- हो गए शुरु सवेरे सवेरे।
कागज रंगने में आपको,
क्या मज़ा आता है पिताश्री मेरे?

मैं बोला-बेटे,तू क्या जाने
महिमा कविता की,कवि की,
उसके सामने कोई औकात
नहीं है इस रवि की भी,
अब ये रवि कौन है?
बेटा परेशान हो झल्लाया,
इस नाम का चैम्पियन तो
गूगल भी न ढूँढ पाया,
मैं उसकी नादानी पर
तसल्ली से मुसकाया।

ये नेट और गूगल पे
नहीं है बेटे मेरे!
इसकी तो रही है ,
हम कवियों से सदा ही होड़,।
और इस होड़ में ,
रिकॉर्ड है हमारा बेजोड़।
बेटा बोला – अरे डैड!
अतीत को छोड़ो,
वर्तमान में आओ।
मुझे कॉम्पीट करना तो ,
आपके बस की बात नहीं,
शनि अंकल को ही
हरा कर दिखाओ।

शनि अंकल कौन?
मैं समझ न पाया।
वाह पापा,आपने तो
चिराग तले अंधेरा दिखाया।
हर सैटर डे को ,
शनि का दान ,
महाकल्याण ,
वाले अंकल को
नहीं जानते।
दो रुपये में उनसे
बलाएँ  टलवाते हो,
उन्हें नहीं पहचानते?

मेरा कवि ताव खा गया,
मेरी भावनाओं में
सैलाब आ गया।
उस भिखारी की तुलना ?
मुझ कलमकार से।
गंगू तेली लेगा पंगा ,
राजा भोज की सरकार से?

बोला मैं भन्नाकर-
बता तो, उस फटीचर में तुझे
ऐसा क्या दिखा?
बौना छुएगा चाँद को,
उसकी एक खूबी तो बता।

ऐैसी कम तैसी करता
मेरे काॅन्फिडेंस की,
सुपुत्र मेरा हँसा।
बोला डियर फादर,
जोश में मत आइए,
शनि अंकल की खूबियों पर
ज़रा नज़र तो घुमाइए।

शारीरिक और आर्थिक ,
दोनों ही एंगल्स से,
वो आपसे ज्यादा साउंड हैं।
आप रूपया हो,वो पाउंड हैं।

वो रोज सुबह नहाते हैं,
मॉर्निग वॉक पे जाते हैं।
आप तो होली ,दिवाली ही
मुश्किल से फुर्सत पाते हैं।

वे सेंट -परसेंट परोपकारी हैं।
इस लोक में बैठे- बैठे
सबका परलोक सुधरवाते हैं।
दो रूपल्ली में आपका ,
रिजर्वेशन स्वर्ग में कराते हैं।
दुष्ट ग्रहों की वाट लगाते हैं।

सैल्फ  एम्पलॉयड हैं,
दो घंटे में ही अच्छा कमाते हैं।
पूरा टी.डी .एस.बचाते हैं।
तेल भी बेचते हैं।
नींबू-मिर्ची का
नजरबट्टू लगाते हैं।
आप तो मंथ के
दूसरे वीक-एंड में ही,
ठन-ठन गोपाल कहाते हैं।

बड़े-बडों से उनका नाता है।
दिन- राशि,तिथि- ज्योतिष,
सब उन्हें आता है।
प्रिय पिताजी, सच मानिए,
अगर वे के.बी. सी.में पहुँच पाएँ,
तो उन्हें करोड़पति जानिए।

और आप? बेटे ने मुझे
हिकारत से  देखा।
फिर उसकी आँखों में,
मिडिल क्लासी दर्द,
झलक आया।
पता है,शनि अंकल ने
अपने बेटे का ,
मनिपाल में ,मैडिसन में ,
एडमिशन करवाया है।
मैंने तो कड़ी मेहनत के बाद
बी.एस.सी.में प्रवेश पाया है।
तो पूज्य पापा श्री,
छोड़िए ये कागज पैन।
बी ए प्रैक्टिकल मैन।

देकर नसीहत बेटा ,
रफूचक्कर हो गया।
कटु यथार्थ की धरती से
साक्षात मेरा हो गया।
फट गया मेरा कलेजा,
विचार -वैभव बह गया।
भीगे नयन लिए ,
प्रलय -प्रवाह देखते,
कामायनी के मनु सा ,
मैं हताश हो गया।

लेखन सारा बेकार
लगने लगा,
बेटे की बातों में सार
दिखने लगा।
लेखन ने मुझे क्या दिया है?
आलोचना का विष ही पिया है।

मैं दुविधा में पड़ गया।
कवि और शनि के मध्य ,
महाभारत सा मच गया।
यथार्थ करने लगा प्रहार,
क्यों न लगूँ उस पंक्ति में,
है जिसमें शनिवार।

लेकिन कवि ने मेरे ,
नहीं मानी थी हार।
स्वयं अपना कृष्ण बना,
अपने को गीता ज्ञान दिया।
पल भर की दुविधा को,
तुरंत पार कर लिया।
अब कवि मेरा अमर था।
उसे श्रद्धा का संबल था।

वो अब सिर उठाए खड़ा था।
उसे मूल्यों से गिरना
नहीं आता था।
समाज का दिशा निर्देश
उसे भाता था,
उसका स्वार्थ से नहीं,
मानवता से नाता था।

कवि मेरा ओजभरा हुंकारा,
निराशा-मरू में लहराई,
स्निग्ध गंग जल धारा।
मन स्वाभिमान से,
आप्लावित हो गया।
शब्द हँसने लगे,
सृजन नई रामायण का,
फिर हो गया।

वीणा गुप्त

नई दिल्ली

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