साहित्य

इस बात से बहुत दुःखी रहता था तब मेरी रूह , समझती थी और ,,,,

डॉ रामशंकर चंचल

इस बात से बहुत दुःखी रहता था
तब मेरी रूह , समझती थी और ,,,,

मेरे जीवन की अद्भुत पीढ़ा सदा ही बनी रही कि, कितनी भी बड़ी उपलब्धि प्राप्त की हो, मेरे अपने, घर परिवार और मित्र, बहुत ही करीब के खास कभी किसी ने, बधाई जैसा तीन अक्षर का शब्द तक नहीं लिया
केवल बेटी लिखती, या मेरी रूह जो सचमुच खूब अद्भुत प्रतिभा धनी हैं और बेबाक व्यक्तिव है और मेरी पूज्य है
जब भी कोई अद्भुत सम्मान उपलब्धि मिलती मुझे से ज्यादा खुश
नज़र आता ओर बधाई तो छोड़ साहब फोन कर अपनी खुशी जाहिर करती बोलती, सर घर की दहलीज पार कर कभी बाहर नहीं गए और न किसी से फोन पर बात करते हैं और कमाल बेहिसाब प्यार स्नेह और अशीष पा रहे हैं क्या बहुत ही अच्छा लगा आज बधाई और बधाई ,,
तब मैं चुप हो जाता हूं और धीरे से बोलता हूं नही पता कुछ मुझे भी
राम जाने , हर बार बधाई देती, और जब में बोलता दुःखी हो , ऐसा क्यों होता हैं, बताओ ना की अपने परिवार घर मित्र और करीब के कभी खुश हो बधाई नहीं देते
तब बहुत ही प्यार से किसी बच्चे को
समझाते हुए मुझे से बोलती, सर, दुःखी मत हो, यह दुनिया ऐसी ही है
आप परेशान मत हो मस्त रहे खुश रहे और दुनिया को दिखाते रहे अपना कर्म साधना

सचमुच बेहद ऊर्जा प्रदान करती थी सदा ही आज भी छोड़ने के बाद मेरे साथ पास उसे महसूस करता हूं और सब कुछ ईश्वर कृपा से उसी की अद्भुत साथ दुआं है कि अजीब ऊर्जा महसूस करता पता नहीं क्यों बहुत कुछ कर जाता हूं जो कभी संभव नहीं न कभी सोचा

उसका दी है, शिक्षा अब में मस्त रहता हूं खुश रहता हूं और लगा रहता हूं बिना कोई चाह इच्छा के मिल जाता हूं तो ईश्वर को उन्हें सादर प्रणाम करता हूं बस इतना
बाकी सब कुछ राम जाने,

डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश

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