
मेरे गांव का मांगू, जब जब ताड़ी के नशे में मस्त हो जाता हैं , कोई आदिवासी भाषा में गीत गुनगुनाते हुए, गिरता,पड़ता खुर्राटी मारता हुआ, मेरी स्कूल के आंगन में दस्तक देता हूं और, मस्त हो बार बार एक ही बात बोलता हूं, बाबूजी तू असल है और पैर छूने लगता, में उसे बहुत समझता कि, पैर मत छूं तुम बड़े हो
मूझ से, वह कुछ गुस्से से, हमू का बड़ा मारासब, बड़ा तो शहर में है और फिर वहीं बात, तू असल है मास्टर साहब और फिर कोई गीत गुनगुनाते हुए या अन्याय के खिलाफ
किसी को गाली देते हुए चिखते हुए चल देता हूं , वह मुझे बहुत प्यार करता था अक्सर बोलता था कि, थने कोई डारावे तो, हमू ने की
अर्थात तुझे कोई डराता है तो मुझे बोलना, में बोलता कोई नहीं है रे
सब तेरे जैसे प्यार करते हैं और वह फिर चल देता
आज मेरे उसी गांव के सोमला से मुलाकात हुई धूमते, मैने पूछा मांगू हैं कि, उसने बताया नहीं रहा अब, एक दिन खूब पीली, रात भर किसी अधिकारी को गालियां देता रहा और सुबह देखा कि वह मर गया था
अनन्या के ख़िलाफ़ आवाज उठता मांगू चला गया , अन्याय के खिलाफ
मांगू जैसे कितने मांगू आवाज़ उठाते चला गए पर अन्याय यूं का यूं बल्कि और पनप गया, धनी हो गया और संपन्न
में पूरे रास्ते मांगू की सादगी सहजता सरलता और प्यार को याद करता रहा आखरी यह कथा लिख कुछ राहत महसूस कर, रहा हूं शायद, जानता हूं कुछ नहीं होगा सदियों से चल रही मांगू की पीड़ा औरदर्द चलती रहेंगी , सदियों जिन्दा रहेगी
बस अंत में सदा की तरह उस ईश्वर से प्रार्थना करता हूं हैं ईश्वर कैसी दुनिया बनाई है तुमने,, वह कोई जवाब नहीं देता है और मैं उसके जवाब के लिए सारी जिंदगी निकाल दी, राम जाने साहब क्यों हां क्यों ऐसा होता हैं और चल रहा है सदियों से
डॉ रामशंकर चंचल
झाबुआ मध्य प्रदेश
की अद्भुत सत्य कथा, बेहद विचारणीय सत्य लिए




