माई के अस केहू नांहीं ए दुनियाँ में बाटे,
जे ल इकन के दुखमेंजगते-जगते रतिया काटे,
हरदम सपना सुख के देखे अपनी संसति खाति
ल इका-ल इकी एके माने
हंसि के छतिया साटे।
हाथी घोड़ा बनि के माई बाबू रोज खेला वें,
अंखियन की पुतरी में दूनों राजा-रानी
डाटें।
देखि देखि के हरषित होखे दूसर केहू
नाहीं,
घिउओ के गगरी गिरला पर ना बचवन के डांटें
माई के ज,इसन भगवान न कवनो चीज बनवलें
दूसरकवनो ढांचा माई के ज इसन ना बाटे।
उलझि मुलझि ग, इलें भगवान अपनिये कृति में अपने
माई ज इसन फिर रचना के कवनो यन्त्र न बाटे।
विजय चन्द्र त्रिपाठी




