साहित्य

ठंड को परास्त करते गांव

डॉ रामशंकर चंचल

‌ मेरे गांव
सदियों से ठंड से
युद्धरत है
कड़कड़ाती ठंड ओर
अर्धनग्न बदन में
बांस कवेलु की
झोपड़ी में निवास करता हुआ
गांव के सहज सरल
जन मानस, आदिवासी जन
सदियों से ठंड से निजात पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं
आदि हो चुका मेरा यह गांव
अब किसी शासन का
ईश्वर कृपा का
मोहताज नहीं हैं
जी लेता है
सदा ही सालों से
ठंड को परास्त करता हुआ
मस्त और प्रसन्न हो
अद्भुत साहस और ऊर्जा
समेटे कर्मशील जीवन के
मालिक बन गया गांव
लाखों,करोड़ों के लिए
प्रेरणा स्त्रोत हैं
सत् सत् प्रणाम करता हूं
गांव को
यहां के जीवंत सजीव सहज
भोले भाले इंसानों को
जो सार्थक प्रेरणा देता
जीवन सार्थक करता हुआ
जीवन दर्शन देता है

डॉ रामशंकर चंचल

झाबुआ मध्य प्रदेश

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